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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवा भाग २८५ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण विसंभोगीकरनेके नौस्थान६३२ ३ १७६ ठाउ ३ सू ६६ । विस वाणिज्जे कर्मादान ८६० ५ १४५ उपा.प्र.१७,भ.श.उ.सू. ३३०, प्राव ह अ६ पृ८२८ विस्तार नरकावासों का ५६० २ ३३६ जी.प्रति ३सू८४ विस्तार रुचि ६६३ ३ ३६३ उत्त प्र २८ गा.२४ विहरमान वीस ६०३ ६८ बिलोक ,विहर ,ठा.-सू ६३५ विहायोगति के सत्रह भेद ८२२ ५ ३८६ पनप १६ सू २०५ वीर कृष्णा रानी ६८६ ३ ३४५ अंत व.८ अ ७ वीर रस ६३६ ३ २०७ अनु.सू १२६गा ६४-६५ वीरस्तुति अकीरगाथा६५५ ६ २६६ सूय भ६ १ वीरासनिक ३५७ १ ३७२ ठा ५७ १सू ३६६ २ वीर्याचार ३२४ १३३३ गाउ रसू ४३२,ध अधि ३ श्लो५४ पृ.१४० वीर्यात्मा ५६३ ३ ६६ भग १२ उ १•सू ४६५ वीयोन्तराय के तीन भेद ३८८ १४११ कर्म भा १गा ५२,पन्न प २३ हस की कथा औत्पत्तिकी १४६ ६ २५७ न सू.२७ गा ६३ टी बुद्धि पर वृत्त संस्थान ४६६ २ ६६ भश २५उ ३सू ७२४,पन्न प.. दृत्तिकान्तार यागार ४५५ २ ५६ उपा म.सू,श्राव ह भ.६१. ८१०,ध अघि २श्लो २२१ ४१ द्धि छः प्रकार की ४२५ २ २४ भागम. पभ स्वर ५४० २ २७१ अनुसू १२७गा २५,ठा सू५५५ १ पैर जमीन पर रख कर सिहासन पर बैठे हुए पुरुष के नीचे से सिहासन निकाल लेने पर जो अवस्था रहती है उस भवस्था से बैठने वाला साधु । २ धर्म कार्यो में यथाशक्ति मन वचन काया द्वारा प्रवृत्ति काना वीर्याचार है।
SR No.010515
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1945
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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