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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, अाठवाँ भाग २६६ विषय बोल,भाग पृष्ठ प्रमाण राम कृष्णा रानी ६८६ ३ ३४६ प्रत व ८ . रायप्पसेणी (राजप्रश्नीग)७७७ ४ २१६ सूत्र का संक्षिप्तविषयवर्णन राशि की व्याख्या और भेद ७३ १.४ सम १४६ ।' १ राशि संख्यान ७२१ ३४०४ ठा १०३ ३ सू ७४७. राष्ट्र धर्म ६६२ ३ ३६१ ठा.१० उ.३ स ७६ ० रुचक प्रदेश आठ ६०७ ३ १२५ प्राचाश्रु १७ १उ १नि गा ५२ टी ,यागम ,भ श ८उसू ३४७ टी,टा ८ उ ३ सू ६२४ २ रुचि १२७ १६१ भश १उ ६७६ । रुचि दस ६६३ ३ ३६२ उत्त.व २८गा १६-२७ रूप मद ७०३ ३ ३७४ ठा १०सू ७१०, ठा ८सू ६०६ ३ रूप सत्य ६६८ ३ ३६६ ठा १०सू ७४१,पन्न प ११ सू __ १६५,ध अधि ३श्लो ४१ टी १२१ रूपस्थ धर्मध्यान . २२४. १ २०८ ज्ञान प्रक ३६, यो प्रका ६, कभा २ श्लो २०६ रूपातीत धर्मध्यान २२४ १ २०६ ज्ञान प्रक ४०, यो प्रका १०, - कभा २श्लो २०६:I, ६०.१ ४२ तत्त्वार्थ अध्या ५ सू.४ रूपी अजीव के ५३० भेद ६३३३ १८१ पन्न प १सू ३,उत्त श्र.३६गा ४६ रूपी के दो भेद ६१ १ ४२ 'भग १२उ ५सू ४४० ५ धान प्रादि के ढेर का नाप कर वा तोल कर परिमाण जानना । २ श्रद्धा पूर्वक तान दर्शन चारित्र प्रादि के सेवन की इच्छा । ३ वास्तविक्ता न होने पर भी रूप विरोप को धारण करने से किसी व्यक्ति, या चम्नु को उस नाम से पुकारना रूपसत्य है। रूपी
SR No.010515
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1945
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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