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________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला विपय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण १ मूल वीज ४६६ २ ६६ दश प्र.४ मृल मूत्र चार २०४ ११६३ मतातिशयअरिहन्तदेव के १२६ व १६६ स्या. का १ टी. मृगचर्या पर नौ गाथाएं ६६४ ७ १८६ मृगापुत्र (अन्यन्वभावना)-१२ ४ ३८२ उत्त १६ मृगापुत्र की कथा ६१० ६ २६ विन १ मृगावती ८७५ ५ ३०३ भाव ह निगा १०४८, द. १ नि गा.७६ मृदुकारुणिकी विकथा ५३२ २ २६७ टा.७ ३ ३ सू ५६६ मृपावाद चार प्रकारका २७० १ २४६ दशम ८ दूसरे महारत की टीका मृपावाद दस प्रकारका ७०० ३३७१८.५०१ ७४१,पन प.११सू.१६५, ध पनि ३-लो ४१ टी १२३ मृपावादविरमणरूपद्वितीय३१८ १ ३२५ मम २५,माचा. अ.२.४ महावन की पाँच भावनाएं म ५७६, माव ह भ ४५६५८, प्रव. नागा ६.४०,भ. भार . टी .१२४ मृपावाद विरमण व्रत ७६४ ४ २८१ प्रागम. निश्चय और व्यवहार से मंघकीउएमासदानीपुरुप१७५ १ १२६ ४३,४२९६ मेघ की उपमा से पुरुपचार१७३ १ १२७ ८ ८३ ४ १.३४६ मेघकुमार की कया १००५ ४२६ मा भ.१ मेघकी उपमा से वक्ता १७४क १२८ टा ४८.४ ८७ प्रारदाता के चार प्रकार म वनस्पति का मत मागवीन का काम देता है, फमल मालि
SR No.010515
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1945
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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