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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवाँ भाग २४७ दिपय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण भाव सम्यक्त्व १० १८ प्रपं. द्वा.१४६ गा ४२ टी. १ भावानुपूर्वी ७१७ ३ ३६१ अनु सू ७१ २ भाविताभावितानुयोग ७१८ ३ ३६४ ठा १०३.३ 'सू ७२७ भावन्द्रिय २३ १ १७ पनप १५,तत्त्वार्थ अध्या २सू १५ भावेन्द्रिय के दो भेद २५ १ १७ तत्त्वार्थ अध्या २ सू १८ भाषा के चार भेद २६६ १ २४८ पन प ११ सृ १६ १ भाषा के बारह भेद ७७६ ४ २३८ प्रश्न मवरद्वार २ सू २४टी भापा पर्याप्ति ४७२ २ ७८ पनप १सू.१२ टी., भ श.३उ.१ सू १३०, प्रच.द्वा २३२ गा १३१७,कर्म भा.१गा ४६ भापार्य ७८५ ४ २६६ वृ उ पनि.गा ३२६२ भापा समिति ३२३ १ ३३१ सम ५,ठा ५२, ४५७,उत्तम २४, ध प्रवि ३श्लो.४७टी पृ १३० भिक्खु पडिमा बारह ७६५ ४ २८५सम १२,भ श २ उ १टी,दशा द ७ भिक्षा की नोकोटियाँ ६३१ ३ १७६ ठाउ सू ६८१,याचा श्र.२ उ.५ सू८८ टी भिक्षाचर्या ४७६ २८६ उत्तश्र ३०गा ८,ठा ६ ११, __उव सू १६, प्रब द्वा गा.२७० भिक्षाचर्या के तीस भेद ६३३ ३ १८६ । उव सू १६,म.श २५उ ५ भिक्षाचर्या के तीस भेद ६५६ ६ ३१० सू.८०२ भिक्षुक ४मच्छ की उपमासे ४११ १ ४३७ या ५ उ ३ सू ४५३ भिक्षक का खरूप बताने ८६२ ५ १५२ उत्ता १५ वाली सोनहगाथाएं १ौदारिक परिगाम आदि माता का मम, परिपाटी। २ द्रव्यानुयोग का एक भेद
SR No.010515
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1945
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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