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________________ २२२ श्री मेटिया जैन अन्यनाला विपय बोल भाग पृष्ठ पृथ्वीका के चालीस भेद ६८७७ १४५ पृथ्वीकाय के सात भेद ५४५२२८४ ४६५ २ ६५ पृथ्वी के बः भेद पृथ्वी के देशतः धृजने के ३वोल ११६ १८२ पृथ्वी वलयां सेवलगित है११५ पृथ्वीसारीधूजने के बोल ११७१८२ १८१ १ पृष्ट लाभिक पृष्टिना (पुट्टिया) क्रिया पेटा गोचरी ममाण पन प १ सू. १५ पन. १ सृ १४ जी. प्रति ३१०१ टा ३ ४ १६5 उ. ४ सू २२४ ठा ३३.४ सू १६८ ३५४ १ ३६६ ठा ५.१.३६६ २६४१२७६ टा.२ ६०, ट ४ ४१६ ४४६ २ ५१ ठा ६.३५१४, उत्त भ ३० こ १६, प्रवद्वा ६ ७ ७४५, वधि २२ पृ ३७ पैंतालीस थागम पैतालीसगाथाउत्तराध्ययन ६६६ ७ २५४ उत्तत्र १५ मूत्र के पचीसवें अध्ययन की पैंतीस गुण गृहस्थधर्म के ६८० ७७४ योलका ११लो ४७-६६११ पैतीस वाणी के अतिशय ६७६ ७७१ सम ३४, रामदीय म १० टी. ६२४ ३ १६४ टा.६६६१, अणुच.३ ६६७ ७२६० जैय, अभिगमा १ प्रस्तावना C पोटिल नगार पोतक वस्त्र ३७४१३८० 21 पोरिसी का प्रमाण चार ८०३४ ३०४ उत्नभ २६गा १३-१४ महीनों का ४८३ २६७ पोरिसी के छ: आगार पग्मिी सापोरसी का ७०५ ३३७७ पच्चक्रवाण १ माहार नादि के लिए पूछने वाले दाता में ही मित्रा ऐने वाला अभिप्रधारी साधु ● का बना हुआ । प्राद्वा८२०१०९०, भाव अनिगा १४६३७. ८११-१२ मा ८-११
SR No.010515
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1945
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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