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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवा भाग १८७ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण नमस्कारसूत्र में सिद्ध और ह८३ ७१८ म.मंगलाचरण टी ,विशे.गा. साधु दो ही पद न कहकर ३२.१ से ३२०६ पॉच पद क्यों कहे ? नमस्कार सूत्र में सिद्ध से ९८३ ७ ९८ म मगलाचरण टी , विशे गा पहले अरिहन्त को नम ३२१०-३२२१ स्कार क्यों किया गया ? नमिराजर्पि-एकत्वभावना८१२ ४ ३८१ उत्तम नमुक्कार सहिय,पोरिसी ७०५ ३ ३७६ प्रबद्वा ४ गा २०१-२०२, आदि दस पञ्चक्रवाण प्राव ह अ६ नि गा १५९७, पाठ सहित पंचा ५गा.८-११ नय ३७ १ २४ रत्ना. परि ७ सू.१ नय ४६७ २ १७१ नय के दो भेद १७ १ १४ रत्ना०परि.७ सू५ नय के भेद प्रभेद ४६७ २१७४ नय सात ५६२ २ ४११ अनुसू १५२,प्रव द्वा.१२४गा ८४७-८४८,विशे गा २१८०२२७८,रत्ना परि ७,तत्त्वार्थ अध्या १,पागम ,द्रव्य त। अध्या ५-८,न्यायप्र अध्या ५, नय ,नयप्र.नयविनयो,पालाप. नयों का विषय ५६२ २ ४२५ रत्ना०परि.५ नयों के अपेक्षा विशेष से५६२ २ ४२६ प्रव.द्वा ११४ गा ८४८ टी. दो सौ से सात सौ भेद नयों के तीन दृष्टान्त ५६२ २ ४२७ अनु सू.१४५ नयों के दूसरी अपेक्षा से५६२ २ ४२७ सात सौ भेद
SR No.010515
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1945
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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