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________________ धाओं के होने से बीकानेर राज्य एवं बाहर के व्यापारी यहाँ काफी तादाद में आने लगे। ऊन का कारबार करने वाली बड़ी बड़ी कम्पनियाँ भी यहाँ अपने कर्मचारी रखने लगीं। इस प्रकार उत्तरोत्तर प्रेस का काम बढ़ने लगा । सन् १९३४ में आपने ऊन के फॉटों से ऊन निकालने के लिये ऊन बरिंग फेक्टरी ( Wool Burring Factory ) खरीदी। राज्य ने इसके लिये भी भापके हक में मोनोपोली स्वीकृत की। इस प्रकार कुछ ही वर्षों में आपकी लगन और परिश्रम ने आपके संकल्प को कार्य रूप में परिणत कर दिया। आज ऊन प्रेस सन् १९३० के ऊन प्रेस से कुछ और ही है। यहाँ सैंकड़ों मजदर लगते हैं और हजारों मन ऊन का व्यापार होता है। हजारों गाँठे बंधती हैं और विलायत भेजी जाती हैं। प्रेस की साख ने लिवरपूल के मार्केट को भी प्रभावित कर रखा है । प्रेस के मार्के वाली गॉठे वहाँ अपेक्षाकृत ऊँचे भाव में विफती हैं। सेठ साल की धार्मिकता एवं परोपकार-भावना के फलस्वरूप ऊनप्रेस में भी गाय गोधों के घास एवं कबूतरों के चुगे के लिये होमि. योपेथिक एवं आयुर्वेदिक औषधियों के लिये तथा साधारण सहायता आदि के लिये पृथक् पृथक् फंड कायम किये हुए हैं और सभी में अलग अलग रकम जमा कराई हुई है । रकम के व्याज की आय से उपरोक्त सभी कार्य नियमित रूप से चल रहे हैं। उनप्रस के आदतिये भी गाय गोधों के घास एवं कबूतरों के चुगे के लिये लागा देते हैं। इस प्रकार ऊन प्रेस को सब भॉति समुन्नत कर सेठ साहेव ने उसे अपने सुयोग्य पुत्र श्री लहरचंदजी, जुगराजजी, और ज्ञानपालजी के हाथ सौंप दिया है एवं आपव्यापार व्यवसाय से सर्वथा निवृत्त हो धर्मध्यान में संलग्न हैं। पिछले पाँच वर्षों से धार्मिक साहित्य, पढ़ना, सुनना और तैयार करवाना ही आपका कार्यक्रम रहा है।
SR No.010515
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1945
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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