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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल सग्रह, श्राठवॉ भाग ११६ विषय बोल भाग पृष्ट प्रमाण चार उपसर्ग २३६ १ २१८ / चार उपसगेतियञ्चसंवन्धी२४२ १ २१६ | ठा ४ ४२ ३६१ सय चार उपसर्ग देव संबन्धी २४० १ २१६ / प्र ३ उ १ नि गा ४८ चार उपसर्गमनुष्यसंबन्धी२४१ १ २१६ । चार उपाय कपाय जीतने के १६७ १ १२५ दश म ८ गा ३६ -- चार कपाय १५८ १ ११७ पन प. १४,ठा.४८ १सू २४६, कर्म भा १ गा.१७-१८ चार कपाय की हानियां १६६ १ १२५ दश अ ८ गा ३८ . चार कषायों की अधिकता१६३ १ १२३ गति की अपेक्षा चार कारण ईर्यासमिति के१८१ १ १३५ उत्त घ २४ गा ४-८ चार कारण जीव,पुद्गलों के२६८ १ २४७ ठा० ४उ० ३ सू० ३३७ लोक बाहर न जा सकने के चार कारण तिर्यञ्चायु के १३३ १६६ ठा०४ उ०४ सू० ३७३ चार कारण देव के मनुष्य-१३८ १ १०१ ठा• ४ उ० ३ सू ३२३ लोक में न पा सकने के चार कारण देवायु के १३५ १ १०० ठा,४३ ४ सू ३७३ - चार कारण नरकायु के १३२ १ ६६ ठा.४३.४ सू ३७३ चार कारण मनुष्यायु के. १३४ १ १०० ठा ४४ ४सू सू ३७३ । चार कारणों से आहार-१४३ १ १०५ ठा ४उ ४ सू ३५६, प्रब द्वा, संज्ञा उत्पन्न होती है __ १४५ गा ६२३ टी . चार कारणों से जीव, पुद्गल२६८ १ २४७ ठा ४उ रेस ३३७ लोकसे बाहर नहींजासकते चार कारणों से परिग्रह- १४६ १ १०६ ठा.४३.४सू ३४६,प्रवद्वा १४५ संज्ञा उत्पन्न होती है गा, २३ टी.
SR No.010515
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1945
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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