SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवॉ भाग ८५ विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण कल्प अठारह साधु के ८६० ५ ४०२ सेमे १८, दश अ६ गा८.६६ कल्प दस साधु के ६६२ ३ २३४ पचा १७ गा. ६-४० कल्पनीय ग्रामादि१६स्थान८६७ ५ १६६ वृ उ. १सू. ६ कल्पपलिमन्थ छः ४४४ २ ४७ ठा.६ उ ३सू ५२६, (जी) उ ६ फल्प बीस १०४ ६६ वृउ १ कल्पवृक्ष के दस भेद ७५७ ३ ४४० सम १०,१.१०उ ३ सू ७६६, प्रव द्वा १७१गा १०६७-७० कल्पवृक्ष क्या सचित्त ११८६ १४० याचाच २ पीठिका,जी प्रति वनस्पति रूप औरदेवाधि ३सू.१११,ज वक्ष २सू २०टी., ष्ठित हैं? प्रव द्वा १७१,यो प्रका.४श्लो ६४ कल्प संख्यान ७२१ ३४०६ ठा १० उ ३ सू ७४७ कल्पस्थिति छः ४४३ २ ४५ ठा ३ उ ४सू २०६,ठा ६ उ. सू ५३०, वृ (जी) उ ६ कल्पातीत ५७ १ ४० तत्त्वार्थ अध्या ४ सू १८ कल्पोपपन्न देव के इन्द्र दस ७४१ ३ ४२. ठा १० उ ३ सू ७६६ कल्पोपपन्न देव वारह ८०८ ४ ३१८ पनप २,४,६,जी. प्रति ३सू २०७-२२३,तत्त्वार्य,अध्या ४ कल्याणक पके २७५ १ २५३ पचा ६ गा.३०-३१,दशा द ८ कपाय आश्रव २८४ १ २६६ ठा ५ उ २सू ४१८, सम ५ कपाय की ऐदिक हानियाँ १६६ १ १२५ दश अ, ८ गण ३८ कपाय की व्याख्या और १५८ १ ११७ पन.प १४सू १८८, ठा ४३ १ सू.२४६,कर्म भा १गा.१७-१८ कपाय कुशील ३६६ १ ३८१ ठा ५ उ.३सू ४४५,भ.स २५ र ६ सू७५१ फपाय कुशील के पाँच भेद ३६६ १ ३८४ ठा उ. ३ सू ४४५ भेद
SR No.010515
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1945
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy