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________________ श्री सेठिया जन ग्रन्थमाला से देखता है उमी प्रकार मनःपर्ययज्ञानी भी अचनुदर्शन द्वारा देवता है। मनःपर्ययज्ञानी घटादि अथ का चिन्तन करते हुए व्यक्ति के मनोद्रव्य मनःपर्ययज्ञान द्वारा साक्ष त् जानता है और उसके बाद उसके मानस अचतुदर्शन उत्पन्न होता है और उसके द्वाग वह उन्हीं का विकल्प करता है । इस श्रचनुदर्शन की अपेक्षा ही यह कहा जाता है कि मनःपर्ययज्ञानी देखता है। , नन्दी सूत्र के टीकाकार ने इसका दूसरी तरह से भी स्पष्ट करण किया है। सामान्य रूप से क्षयोपशम के एकरूप होने पर भी बोच में द्रव्यों की अपेक्षा क्षयोपशम के विशेप होने का सम्भव है। इसनिये अनेक तरह का उपयोग हो सकता है। जैसे इसी मनःपर्ययज्ञान में ऋजुमति विपुलमति रूप दो तरह का उपयोग है । यही कारण है कि मनोद्रव्य के विशिष्टतर आकार के ज्ञान की अपेक्षा मनःपर्ययज्ञानी के लिये 'जानता है' यह कहा जाता है और मनोद्रव्य के सामान्य आकर को जानने की अपेक्षा 'वह देवता है। इस प्रकार कहा जाता है । इस प्रकार मनोद्रव्य के विशिष्टतर ग्राकारज्ञान की अपेक्षा मनोद्रव्य का मामान्य श्राकार का ज्ञान व्यवहार से दर्शन कहा गया है. वास्ता में तो यह भी ज्ञान ही है। यही कारण है कि सूत्र में चार ही प्रकार का दर्शन कहा गया है. पाँव प्रकार का नहीं । वास्तव में मनःपयं यदशन सम्भव नहीं है। नोट-विशेपावश्यक माष्य में इस सम्बन्ध में और भी मन्तव्य दिये हैं जैसे मनःपर्ययज्ञानी अवधिःशन से दखता है. विभंगदर्शन जैसे अवधिदर्शन में अतर्भूत है वैसे मनःपर्ययदर्शन भी अबाधदर्शन में अन्तर्भूत है यादि । पर ये मन्तव्य सिद्धान्त सम्मत नहीं हैं। (नन्दी सूत्र टीका मनायज्ञ नाधिकार) (विशेरावश्यक भाप्प गाथा ८१५) (१०) प्रश्न यदि इन्द्रिय और मनःकारण सामान्य अर्थ को विषय करने वाला ज्ञान दर्शन है, तो फिर चक्षुदर्शन और
SR No.010514
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2053
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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