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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, सातवाँ भाग ७७ चोरी आदि । मद्यपान, मांसभक्षण आदि पाप ऐसे हैं जिनका कुपरिणाम यहाँ नजर नहीं आता । किन्तु सभी पाप कर्मों का फल शास्त्रकारों ने नरकादि की यातना बतलाया है । अतएव गृहस्थ को सभी पाप कर्मों से डरना चाहिये । (५) प्रसिद्ध देशाचार का पालन- देश के विशिष्ट व्यक्तियों द्वारा मान्य होकर जो खानपान, वेप आदि का आचार सारे देश में बहुत काल से रूढ़ हो गया है वही प्रसिद्ध देशाचार कहलाता है । गृहस्थ को प्रसिद्ध देशाचार के अनुसार ही अपना व्यवहार रखना चाहिये । उसका अतिक्रमण करने से देशवासियों के साथ विरोध की संभावना रहती है और उससे अकल्याण हो सकता है। (६) श्रवर्णवाद त्याग - किसी को नीचा दिखाने के लिय उस के अवगुण कहना या उसकी निन्दा बुराई करना अवर्णवाद है । छोटे बड़े किसी प्राणी के अवर्णवाद का शास्त्रकारों ने निषेध किया है। अववाद करने वाले यहीं पर अनेक अपायों के भागी होते हैं । राजा, अमात्य आदि अधिकारी व्यक्तियों का तथा बहुमान्य पुरुषों का अवर्णवाद करने से धन का नाश होता है एवं प्राण भी खतरे में पड़ जाते हैं । परलोक में ऐसा करने वाला नीच गोत्र बाँचता है । स्थानांग सूत्र के पांचवें ठाणे में अरिहन्त, धर्म, संघ आदि के अवर्णवाद का फल दुर्लभवोधि कहा है । अतएव गृहस्थ को अववाद का त्याग करना चाहिये । (७) घर कहाँ और कैसा हो ? - रहने के लिए घर बनाने या किराये आदि पर लेने में गृहस्थ को इन बातों का ध्यान रखना "चाहिये । घर अधिक द्वार वाला न हो, घर की जगह शुभ हो, शल्यादि दोषों से रहित हो, घर न अधिक खुला हो न गुप्त ही हो और आसपास का पड़ोस अच्छा हो । : घर में अधिक द्वार होने से और घर के चारों ओर से एक दम L
SR No.010514
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2053
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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