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________________ ६८ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला देवलोक में के अनन्तरागत सिद्ध इनसे भी संख्यात गुणा अधिक हैं (२६) लान्तक देवलोक में के अनन्तरागत सिद्ध इनसे भी संख्यात गुणा अधिक हैं (२७) ब्रह्मदेवलोक में के अनन्तरागत सिद्ध इनसे भी संख्यात गुणा अधिक है (२८) माहेन्द्र देवलोक में के अनन्तरागत सिद्ध इनसे भी संख्यात गुणा अधिक हैं (२६) सनत्कुमार देवलोक में के अनन्तरागत सिद्ध इनसे भी संख्यात गुणा अधिक हैं (३०) ईशान देवलोक की देवियों में के अनन्तरागत सिद्ध उनसे भी संख्यात गुणा अधिक हैं (३१) सौधर्म देवलोक की देवियों में के अनन्तरागत सिद्ध इनसे भी संख्यात गुणा अधिक हैं (३२) ईशान देवलोक की देवियों में के अनन्तरागत सिद्ध इनसे भी संख्यात गुणा अधिक है (३३) सौधर्म देवलोक के देवों में के अनन्तरागत सिद्ध इनसे भी संख्यात गुणा अधिक हैं। (नन्दी सूत्र टीका परम्परासिद्ध केवलज्ञानाधिकार) चौतीसवाँ बोल संग्रह ६७७-तीर्थंकर देव के चौतीस अतिशय (१) तीर्थङ्कर देव के मस्तक और दाढ़ी मूंछ के बाल बढ़ते नहीं हैं। उनके शरीर के रोम और नख सदा अवस्थित रहते हैं। (२) उनका शरीर स्वस्थ एवं निर्मल रहता है। (३) शरीर में रक्त मांस गाय के दूध की तरह श्वेत होते हैं। (४) उनके श्वासोच्छ्वास में पन एवं नीलकमल की अथवा पद्मक तथा उत्पलकुष्ट (गन्धद्रव्यविशेष) की सुगन्ध आती है। (५) उनका आहार और निहार (शौच क्रिया) प्रच्छन होता है। चर्मचक्षु वालों को दिखाई नहीं देता। (६) तीर्थकर देव के आगे आकाश में धर्मचक्र रहता है। (७) उनके ऊपर तीन छत्र रहते हैं।
SR No.010514
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2053
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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