SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला रजा, अशोका, वीतशोका, । नलिनावती के आगे दक्षिण सीतोदामुखवन है । यह जम्बूद्वीप की पश्चिम की जगती से लगा हुआ है। सीतोदा महानदी के दक्षिण तट की तरह उत्तर तट पर भी पीस से बीस तक आठ विजय हैं। ये आठों विजय उत्तर सीतोदामुखवन से क्रमशः पूर्व में हैं। ये विजय क्षेत्र और उनके विभाजक पर्वत तथा नदियाँ इस क्रम से रहे हुए हैं- वप्र विजय, चन्द्र पर्वत, सुवन विजय, ऊर्मिमालिनी नदी, महावत्र विजय, सूर पर्वत, वप्रापती विजय, फेनमालिनी नदी, वल्गु विजय, नाग पर्वत, सुवल्गु विजय, गम्भीर मालिनी नदी, गंधिल विजय, देव पर्वत, गंधिलावती विजय । इसके आगे पूर्व में गजदन्त सरीखे आकार वाला गंधमादन पर्वत है । यह पर्वत मेरु से वायव्य कोण में स्थित हैं । इन क्षेत्रों की राजधानियाँ ये हैं - विजया, वैजयन्ती, जयन्ती, अपराजिता, चक्रपुरा, खड्गपुरा, अवध्या और अयोध्या । इन बत्तीस विजयों में जघन्य चार एवं उत्कृष्ट वक्तीस तीर्थङ्कर एक साथ होते हैं। वर्तमान समय में पुष्कलावती विजय में श्री सीमंधर स्वामी, वत्स विजय में श्री बाहु स्वामी, नलिनावती विजय में श्री सुबाहु स्वामी और वप्र विजय में श्री युगमंधर स्वामी विराजते हैं । इन बत्तीसों विजयों में विजयों के नाम वाले ही चक्रवर्ती होते हैं । विजय क्षेत्रों में चक्रवर्ती, बलदेव वासुदेव जघन्य चार चार होते हैं एवं उत्कृष्ट अट्ठाईस होते हैं । चक्रवर्ती और वासुदेव एक साथ नहीं होते इसलिये उत्कृष्ट संख्या अट्ठाईस कही गई है । ( जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति ४ वक्षस्कार (लोक प्रकाश दूसरा भाग पन्द्रहवां सर्ग) ६७२ - उत्तराध्ययन सूत्र के पाँचवें काम ⋅ " मरणीय अध्ययन की बत्तीस गाथाएं उत्तराध्ययन सूत्र के पाँचवें अध्ययन का नाम काम मरणीय है । इसमें मरण के सकाम और काम दो भेद बतलाये गये हैं ।
SR No.010514
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2053
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy