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________________ २२ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, सातवां भाग २०४ और २०५ में दिया गया है । आवश्यक सूत्र में सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, चन्दना, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग और प्रत्याख्यान ये छ: अध्ययन हैं । इनका विशेष स्वरूप इसी ग्रन्थ के द्वितीय भाग में बोल नं० ४७६ में दिया गया है । यहाँ बत्तीस सूत्रों के नाम और उनकी श्लोक संख्या दी गई है । सूत्र का नाम श्लोक संख्या सूत्र का नाम (१) आचाराङ्ग : (३) स्थानाङ्ग (५) भगवती r २५०० ३७७० १५७५२ ८१२ (७) उपासकदशा (६) अनुत्तरोपपातिक २६२ (११) विपाक १२१६ (१३) राजप्रश्नीय २०७८ ७७८७ (१५) प्रज्ञापना (१७) सूर्य प्रस २२०० (१६) निरयावलिका श्लोक संख्या (२) सूत्रकृताङ्ग २१०० ( ४ ) समवायाङ्ग १६६७ (६) जाता धर्मकथा ५५०० (८) अन्तकृद्दशा ६०० (१०) प्रश्नव्याकरण १२५० (१२) औपपातिक १२०० (१४) जीवाभिगम ४७०० (१६) जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति ४१४६ (१८) चन्द्र प्रज्ञप्ति २२०० (२०) कल्पावर्त सिका (२१) पुष्पिका (२२) पुष्पचूलिका (२३) वहिदशा ( २४ उत्तराध्ययन २००० (२६) नन्दी सूत्र (२८) दशाश्रुतस्कन्धदशा १८३५ (२६) बृहत्कल्प ७०० (३०) निशीथसूत्र ८१५ ११०६ (२५) दशवैकालिक ७०० (२७) अनुयोग द्वार १६०० ४७३ (३१) व्यवहार ६०० (३२) श्रावश्यक १२३ नोट- यह श्लोक संख्या अभिधान राजेद्रन्कोप प्रमथ भाग प्रस्तावना पृष्ट ३१ से ३५ में से दी गई है । हस्त लिखित प्रतियों में श्लोक संख्या अलग अलग पाई जाती है ।
SR No.010514
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2053
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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