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________________ भी सेठिया जैन ग्रन्थमाला में बातचीत करते हुए देख कर कई लोग कुपित हो जाते हैं। वे स्त्री में दोष की आशंका करने लगते हैं। जैसे यह स्त्री विविध संस्कार वाले भोजन साधु के निमित्त बना कर उनसे साधु की परिचर्या (सेवा) करती है। इसलिये यह यहाँ नित्य आ जाता है। (१६) धर्मध्यान प्रधान व्यापारों से भ्रष्ट हुए शिथिलाचारी साधु मोहवश स्त्रियों के साथ परिचय रखते हैं । ऐहिक एवं पारलौकिक अपाय (हानि) का परिहा रकरने तथा आत्मकल्याण के लिये, स्त्री सम्बन्ध का त्याग करना आवश्यक है। इसीलिये सुसाधु स्त्रियों के स्थान पर नहीं जाते हैं । (१७) बहुत से लोग गृह त्याग कर प्रव्रजित होने के बाद भी मोहवश मिश्रभाव का सेवन करते हैं । वे द्रव्य से साधुवेश रखते हैं किन्तु भाव से गृहस्थाचार का सेवन करते हैं। यहीं ये विश्राम नहीं लेते किन्तु मिश्र प्राचार को मोक्ष का मार्ग बतलाते हैं । इन कुशोलों के शब्दों में ही शौर्य होता है किन्तु अनुष्ठानों में नहीं। (१८) कुशीन साधु सभा में धर्मोपदेश के समय अपनी आत्मा एवं अपने अनुष्ठानों को शुद्ध बतलाता है और पीछे एकान्त में छिप कर पापाचरण का सेवन करता है। किन्तु यह मायाचार उसके छिपाये नहीं छिपता । इंगित (इशारा), आकार आदि के विशेषज्ञ जान लेते हैं कि यह व्यक्ति मायावी एवं धूर्त हैं। . ' (१६) अज्ञानी साधु अपने प्रच्छन्न (छिप कर किये गये) पापाचरण की बात को आचार्य से नहीं कहता। दूसरे से प्रेरणा किये जाने पर वह अपनी प्रशंसा करता है और अकार्य को छिपा देता है । 'मैथुन की इच्छा न करो' इस प्रकार बार बार आचार्य महाराज के कहने पर वह ग्लानि पाता है। . (१०) स्त्री का पोषण करने के लिये पुरुषों को जो विविध ' व्यापार करने पड़ते हैं, उनका जिन्हें कटुक अनुभव है, जो स्त्रीवेद
SR No.010514
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2053
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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