SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भी जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, सातवाँ भाग १७३ सचमेव समभिजाणाहि, सच्चस्स आणाए उवहिए से मेहावी मारं तरइ ॥४॥ भावार्थ-हे पुरुषो! सत्य ही का सेवन करो । सत्य की धाराधना करने वाला मेधावी ( बुद्धिमान्) मृत्यु को तिर जाता है। (प्राचाराग तीसग अध्ययन तीसरा उ० सूत्र ११६) सया सचेण संपन्ने, मित्तिं भूएहि कप्पए ॥५॥ भावार्थ-सदा सत्य से सम्पन्न होकर जगत के सभी प्राणियों के साथ मैत्रीभाव रखो। (स्यगडाग पन्द्रहवा अ० गाथा ३) विस्ससणिजो माया व होइ, पुज्जो गुरुत्व लोअस्स। सयणुव्व सञ्चवाई, पुरिसो सव्वस्स होइ पियो ॥२॥ भावार्थ-सत्यवादी पुरुप माता की तरह लोगों का विश्वासपात्र होता है एवं गुरु की तरह पूज्य होता है। स्वजन की तरह वह सभी को प्रिय लगता है। (भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णकगाथा LL) सच्चम्मि घिई कुवहा, एत्योवरए मेहावी सव्वं पावं कम्मं झोसइ ॥७॥ भावार्थ-सत्य में दृढ़ रहो । सत्य में व्यवस्थित बुद्धिमान व्यक्ति सभी पाप कर्म का क्षय कर देता है। याचारांग तीसरा अध्ययन दूसरा उद्देशा सूत्र ११३) सच्चेसु वा अणवज्जं वयंति ॥८॥ भावार्थ-सत्य वचनों में निरवध (पाप रहित ) वचन प्रधान कहा जाता है। (सयगडांग छठा अ० गाथा २३) सच्चेण महासमुहमज्झेवि चिट्ठति न निमज्जंतिमूदाणियावि पोया, सच्चेण य उदगसंभमम्मि वि न बुज्झइ न य मरंति थाहं तेलभन्ति, सच्चेण यअगणिसंभमम्मि
SR No.010514
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2053
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy