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________________ - - १३२ भी सेठिया जैन ग्रन्थमाला क्या यही अभयदान का अर्थ है या इससे विशेष ___ उत्तर-नहीं, अभयदान का इससे कहीं अधिक भर्थ है। सभी प्राणी सुख चाहते हैं और दुःख से भयभीत होते हैं। भयभीत प्राणियों को भय से मुक्त कर अभय देना, निर्भय करना अभयदान शब्द का अर्थ है । गच्छाचारपयना दूसरे अधिकार में भमयदान का अर्थ करते हुए कहा है-- यः स्वभावात् सुखैषिभ्यो भूतेभ्यो दीयते सदा । अभयं दुःखभीतेभ्योऽभयदानं तदुच्यते ॥ भावार्थ-स्वभावतः सुख चाहने वाले और दुःख से डरे हुए प्राणियों को जो अभय दिया जाता है अर्थात् भय से मुक्त किया जाता है उसी को अभयदान कहा है। पर वैसे यह शब्द मृत्यु के महाभय से डरे हुए प्राणी को मौत के भय से मुक्त करने में आता है। शास्त्रों में जगह जगह इसकी व्याख्या इसी प्रकार मिलती है। सूयगडांगसूत्र के छठे अध्ययन में 'दाणाण सेट्ट अभयप्पयाणं' कहा है,अर्थात् सभी दानों में अभयदान श्रेष्ठ है। टीकाकार इसकी व्याख्या इस प्रकार करते हैं स्वपरानुग्रहार्थ मर्थिने दीयते इति दान मनेकपा तेषां मध्ये जीवानां जीवितार्थिनां त्राणकारित्वादभयदानं श्रेष्ठम् । तदुक्तं दीयते म्रियमाणस्य, कोर्टि जीवितमेव वा । धनकोटिं न गृणाति,सर्वो जीवितुमिच्छति ।। भावार्थ-अपने और दूसरे पर अनुग्रह करने के लिये प्रीयाचक को जो दिया जाता है वह दान है। यह अनेक प्रकार का है । दान के सभी प्रकारों में अभयदान श्रेष्ठ हैं क्योंकि जीना चाहने वाले प्राणियों की यह रक्षा करने वाला है। कहा भी है मरते हुए प्राणी को यदि एक ओर करोड़ों रुपया दिया जाय
SR No.010514
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2053
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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