SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला कूटना, पीटना, तर्जना, ताड़ना और वध, बन्ध तथा क्लेश से वे निवृत्त होते हैं। स्नान, मईन,वर्णक,विलेपन, शब्द, रूप, रस, गन्ध, स्पर्श एवं गन्ध माल्य तथा अलंकार का उन्हें सर्वथा त्याग होतो है। इस प्रकार कपायकारणक, सावध योग पाले, परपरितापकारी व्यापारों से सर्वथा विरत हुए ये अनामार ईर्यासमिति भाषासमिति आदि से युक्त यावत् इसी निर्ग्रन्थ प्रवचन की आराधना को ही अपना उद्देश्य बना कर और सदा इसी को सन्मुख रख कर विचरते हैं । उक्त गुणों वाले ये अनगार महात्मा इस भव की स्थिति पूरी कर कहाँ उत्पन्न होते हैं ? उत्तर-उक्त गुण विशिष्ट अनगार महात्माओं में से कुछेक को अनन्त, अनुत्तर, निर्व्याघात, निरावरण,प्रतिपूर्ण केवलज्ञान केवलदर्शन प्रगट होते हैं । वे अनेक वर्षों तक केवलीपर्याय का पालन कर अनशन द्वारा बहुत से भक्त (आहार) का छेदन करते हैं और जिस उद्देश्य से मुनिदीक्षा धारण की थी उसे पूर्ण कर सभी कर्मों का नाश कर मुक्त हो जाते हैं। जिनमुनि महात्माओं को केवलज्ञान केवलदर्शनप्रगट नहीं होते। वे अनेक वर्षों तक छस्थपर्याय का पालन करते हैं। अन्त में रोगादि होने से अथवा यों ही भक्त का त्याग करते हैं । अनशन द्वारा बहुत से भक्तों का छेदन कर एवं जिस प्रयोजन से प्रवज्या धारण की थी उसकी आराधना कर वे चरम श्वासोच्छ्वास में अनन्त, अनुत्तर, निर्व्याघात, निरावरण, कृत्स्न, प्रतिपूर्ण केवल ज्ञान केवलदर्शन प्राप्त करते हैं एवं सिद्ध, बुद्ध,यावत् मुक्त होते हैं। __कई मुनि जिनके पूर्व कर्म शेष रह जाते हैं वे संलेखना संथारा पूर्वक काल के अवसर काल कर उत्कृष्ट सर्वार्थसिद्ध महाविमान में देव होकर उत्पन्न होते हैं । वहाँ उनके तेतीस सागरोपम की स्थिति होती है। ये परलोक के आराधक होते हैं । (औरपातिक सूत्र ४१)
SR No.010514
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2053
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy