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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, छठा भाग ११ था। उसी नगर में धनदेव सार्थवाह रहता था। उसकी स्त्री का नाम प्रियंगु और पुत्री का नाम अंजू कुमारी था। एक समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी वर्द्धमानपुर के बाहर विजय वर्द्धमान उद्यान में पधारे । भगवान् के ज्येष्ठ शिष्य गौतम स्वामी भिक्षा के लिए शहर में पधारे। राजा के रहने की अशोक वाटिका के पास जाते हुए उन्होंने एक स्त्री को देखा जो अतिकृश शरीर वाली थी। शरीर का मांस सूख गया था । केवल हड्डियाँ दिखाई देती थीं | वह करुणा जनक शब्दों का उच्चारण करती हुई रुदन कर रही थी। उसे देख कर गौतम स्वामी ने भगवान् के पास आकर उसके पूर्वभव के विषय में पूछा । भगवान् फरमाने लगे प्राचीन समय में इन्द्रपुर नाम का नगर था । इन्द्रदत्त राजा राज्य करता था । उसी नगर में पृथ्वीश्री नाम की एक वेश्या रहती थी । उसने बहुत से राजा महाराजाओं और सेठों को अपने वश में कर रखा था। पैंतीस सौ वर्ष इस प्रकार पापाचरण कर वह वेश्या छठी नरक में उत्पन्न हुई। वहाँ से निकल कर वर्द्धमानपुर में धनदेव सार्थवाह की स्त्री प्रियंगु की कुक्षि से पुत्री रूप से उत्पन्न हुई। उस का नाम कुमारी दिया गया । एक समय वनक्रीड़ा के लिए जाते हुए विजयमित्र राजा ने खेलती हुई अंजुकुमारी को देखा। उसके नाता पिता की आज्ञा लेकर उस कन्या के साथ विवाह कर लिया और उसके साथ सुख भोगता हुआ यानन्द पूर्वक समय बिताने लगा । कुछ समय पश्चात् अंजूरानी के योनिशूल रोग उत्पन्न हुआ। राजा ने अनेक वैद्यों द्वारा चिकित्सा करवाई किन्तु रानी को कुछ भी शान्ति न हुई 1 रोग की प्रबल वेदना में उसका शरीर सूख कर काँटा हो गया । हे गौतम! तुमने जिस स्त्री को देखा है वह अंजू रानी है । अपने पूर्वकृत कर्मों का फल भोग रही है। यहाँ ६० वर्ष का आयुष्य
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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