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________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला (२) साधु को ग्राम नगर आदि सोलह स्थानों में, (जो इसी अन्य के पाँचवें भाग के बोल नं० ८६७ में दिये गये हैं) जो 'कोट आदि से घिरे हुए हैं एवं जिनके बाहर वस्ती नहीं है, हेमन्त ग्रीष्म ऋतु में एक मास रहना कल्पता है। यदि ग्राम यावत् राजधानी के बाहर बस्ती हो तो साधु एक मास अन्दर और एक मास बाहर रह सकता है । अन्दर रहते समय उसे अन्दर और बाहर रहते समय बाहर गोचरी करनी चाहिये । साध्वी उक्त स्थानों में साधु से दुगुने समय तक रह सकती है। जिस ग्राम यावत् राजधानी में एक ही कोट हो, एक ही दर वाजा हो और निकलने और प्रवेश करने का एक ही मार्ग हो,वहाँ साधु साध्वी दोनों एक साथ (एक ही काल में) रहना नहीं कल्पता है । परन्तु यदि अधिक हों तो वहाँसाधु साबी एक ही साथ रह सकते हैं। * आपण गृह, रथ्यामुख, शृङ्गाटक, त्रिक, चतुष्क, चत्वर एवं अन्तरापण,इन सार्वजनिक स्थानों में साध्वी को रहना नहीं कल्पता। साधु को अ-य आश्रयों के अभाव में इन स्थानों में रहना कल्पता है। साध्वी को खुले (विना किंवाड़ के) दरवाजे वाले उराश्रय में रहना नहीं कन्यता परन्तुसा धुवहाँ रह सकता है। यदि साध्वी को । विना किंवाड़ के दरवाजे वाले मकान में रहना पड़े तो उसे दरवाजे के बाहर और अन्दर पर्दा लगा कर रहना कल्पता है। आपण गृह - बाजार के बीच का घर अथवा जिस घर के दोनों तरफ बाजार हो। रथ्यामुम्ब - गली के नाके का घर। शृगाटक - त्रिकोण मार्ग । त्रिक- तीन रास्ते जा मिलते हों। चतुष्क - चार रास्ते जहाँ मिलते हों। चत्वर--जहाँ छः रास्ते मिलते हों। अन्तरापण - जिस घर के एक तरफ या दोनों तरफ हाट हो अथवा घर ही दान रूप हो जिसके एक तरफ व्यापार किया,जाता हो और दूसरी तरफ घर हो।
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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