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________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला से प्रवचन - ज्ञान के धारक संघ को भी प्रवचन कहते हैं । विनय भक्ति पूक प्रवचन का ज्ञान सीखकर उसकी आराधना करने, प्रवचन के ज्ञाता की विनय भक्ति करने. उनका गुणोत्कीर्तन करने तथा उनकी आशातना टालने से जीव तीर्थकर नामकर्म बाँधता है । (४) धर्मोपदेशक गुरु महाराज की बहुमान भक्ति करने, उन के गुण प्रकाश करने एवं आहार, वस्त्रादि द्वारा सत्कार करने से जीव के तीर्थकर नामकर्म का बंध होता है । (५) जाति, श्रुत एवं दीक्षापर्याय के भेद से स्थविर के तीन भेद हैं। तीनों का स्वरूप इसी ग्रन्थ के प्रथम भाग के ६१ बोल में दिया गया है । स्थविर महाराज के गुणों की स्तुति करने से चन्दनादि रूप भक्ति करनेसे एवं प्रातुक श्राहारादि द्वारा सत्कार करने से जीव तीर्थकर नामक बाँधता है । (६) प्रभूत श्रुतज्ञानधारी सुनि बहुश्रुत कहलाते हैं । बहुश्रुत के तीन भेद हैं- सूत्र बहुश्रुत, अर्थ बहुश्रुत, उभय बहुश्रुत | सूत्र बहुश्रुत की अपेक्षा अर्थ बहुश्रुत प्रधान होते हैं एवं शर्थबहुश्रुत से उभय बहुश्रुत प्रधान होते हैं । इनकी बन्दना नमस्कार रूप भक्ति करने, उनके गुणों की श्लाघा करने, आहारादि द्वारा सत्कार करने तथा ववाद एवं आशातना का परिहार करने से जीव तीर्थकर नामकर्म बता है । (७) अनशन - ऊनोदरी आदि छहों बाह्य तप एवं प्रायश्चित्त विनय आदि छहों आभ्यन्तर तप का सेवन करने वाले साधु मुनिराज तपस्वी कहलाते हैं। तपस्वी महाराज की विनय भक्ति करने से, उनके गुणों की प्रशंसा करने से, आहारादि द्वारा उनका सत्कार करनेसे एवं अवर्णवाद, आशातना का परिहार करने से जीव तीर्थकर नामकर्म बाँधता है । (८) निरन्तर ज्ञान में उपयोग रखने से जीव के तीर्थहर नाम
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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