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________________ श्री सेठिया जैन अन्यमाला ले जाकर योगभावित फल खिला कर मारता है अथवा भाले, उपडे आदि के प्रहार से उनके प्राणों का विनाश करता है और ऐसा करके अपनी धूर्ततापूर्ण सफलता पर प्रसन्न होता है और हसता है वह महामोहनीय कर्म उपार्जन करता है। (७) जो व्यक्ति गुप्तरीति से अनाचारों का सेवन करता है और कपट पूर्वक उन्हें छिपाता है। अपनी माया द्वारा दूसरे की माया को ढक देता है । दूसरों के प्रश्न का झूठा उत्तर देता है । मूलगुण और उत्तर गुणों में लगे हुए दोषों को छिपाता है। सूत्र और अर्थ का अपलाप करता है यानी सूत्रों के वास्तविक अर्थ को छिपा कर अपनी इच्छानुसार आगमविरुद्ध मप्रासङ्गिक अर्थ करता है । वह महामोहनीय कर्म उपार्जन करता है। (क) निर्दोष व्यक्ति पर जो झूठे दोषों का आक्षेप करता है और अपने किये हुए दुष्ट कार्य उसके सिर मढ़ देता है । दूसरे ने अमुक पापाचरण किया है यह जानते हुए भी लोगों के सामने किसी दूसरे ही को उसके लिये दोषी ठहराता है। ऐसा व्यक्ति महामोहनीय कर्म का बँध करता है। (8) जो व्यक्ति यथार्थता को जानते हुए भी सभा में अथवा बहुत से लोगों के बीच मिश्र अर्थात् थोड़ा सत्य और बहुत झूठ बोलता है, कलह को शान्त न कर सदा बनाये रखता है वह महामोहनीय कर्म उपार्जन करता है। (१०) यदि किसी राजाका मन्त्री रानियों का अथवाराज्य लक्ष्मी का ध्वंस कर राजा की भोगोपभोग सामग्री का विनाश करता है। सामन्त वगैरह लोगों में भेद डाल कर राजा को तुब्धकर देता है एवं राजा को अधिकार च्युत करके स्वयं राज्य का उपभोग करने लगता है। यदि मन्त्री को अनुकूल करने के लिये राजा उसके पास आकर अनुनय विनय करना चाहता है तो अनिष्ट वचन कह
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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