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________________ भी सेठिया जैन ग्रन्थमाला इन तीस क्षेत्रों में उत्पन्न मनुष्य अकर्मभूमिज कहलाते हैं। यहाँ असि मसि और कृषि का व्यापार नहीं होता। इन क्षेत्रों में दस प्रकार के कल्पवृक्ष होते हैं । ये वृक्ष अकर्मभूमिज मनुष्यों को इच्छित फल देते हैं । किसी प्रकार का कर्म न करने से तथा कल्प वृक्षों द्वारा भोग प्राप्त होने से इन क्षेत्रों को भोगभूमि और यहाँ के मनुष्यों को भोगभूमिज कहते हैं। यहाँ स्त्री पुरुष युगल रूप से (जोड़े से) जन्म लेते हैं इसलिये इन्हें युगलिया भी कहते हैं। ___ अकर्मभूमि के, क्षेत्रों के, मनुष्यों के, संस्थान संहनन अवगाहना स्थिति आदि इस प्रकार हैं: गाउप्रमुच्चा पलिश्रोवमाउणो वज्जरिसह संघयणा । हेमवए रएणवए अहमिंद णरा मिहुण वासी ॥ चउसट्ठी पिट्टकरंडयाण मणुयाण. तेसिमाहारो । भत्तस्स चउत्थस्स य गुणसीदिणऽवञ्चपालणया ॥ भावार्थ-हैमवत, हैरण्यवत क्षेत्र के मनुष्यों की अवगाहना एक गाउ (दो मील) की और आयु एक पन्योपम की होती है। वे वज्रऋषभनाराच संहनन और समचतुरस्त्र संस्थान वाले होते हैं। सभी अहमिन्द्र और युगलिया होते हैं। उनके शरीर में ६४ पांसलियाँ होती हैं । एक दिन के बाद उन्हें श्राहार की इच्छा होती है। वे ७६ दिन तक अपनी सन्तान का पालन पोषण करते हैं। हरिवास रम्मएखं आउपमाण सरीरमुस्सेहो । पलिओवमाणि दोगिण उदोगिण उ कोसुस्सिया भणिया।। छहस्स य आहारो चउसट्टि दिणाणि पालणा तेसिं । पिट्ट करंडयाण सयं अट्ठावीसं मुणेयव्वं ॥ भावार्थ-हारवर्ष और रम्यकवर्ष क्षेत्रों के मनुष्यों की आयु दो पल्योपम की, और शरीर की ऊँचाई दो गाउ (दो कोस) की होती है। उनके वज्रऋषभनाराच संहनन और समचतुरस्त्र
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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