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________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला दो तीन आदि संख्याओं को अक्षर समास श्रुत कहते हैं । ( ५ ) पद श्रुत - जिस अक्षर समुदाय से किसी अर्थ का बोध हो उसे पद और उसके ज्ञान को पद श्रुत कहते हैं । ४ (६) पद समास श्रुत - पदों के समुदाय का ज्ञान पदसमास श्रुत कहा जाता है । 1 (७) संघात श्रुत - गति आदि चौदह मार्गणाओं में से किसी एक मार्गणा के एक देश के ज्ञान को संघात श्रुत कहते हैं । जैसे गतिमार्ग या के चार अवयच हैं- देव गति, मनुष्य गति, तिर्यश्च गति और नरक गति | इनमें से एक का ज्ञान संघात श्रुत कहलाता हैं । (८) संघात - समास श्रुत- किसी एक मार्गणा के अनेक - अवयवों का ज्ञान संघात समास श्रुत कहलाता है । ( ६ ) प्रतिपत्ति श्रुत - गति, इन्द्रिय आदि द्वारों में से किसी एक द्वार के द्वारा समस्त संसार के जीवों को जानता प्रतिपत्ति श्रुत है । (१०) प्रतिपत्ति समास श्रुत-गति आदि दो चार द्वारों के द्वारा होने वाला जीवों का ज्ञान प्रतिपत्ति समास श्रुत है । (११) अनुयोग श्रुत--सत्पद प्ररूपणा आदि किसी अनुयोग के द्वारा जीवादि पदार्थों को जानना अनुयोग श्रुत है । (१२) अनुयोग समास श्रुत- एक से अधिक अनुयोगों के द्वारा जीवादि को जानना अनुयोग समास श्रुत है । (१३) प्राभृत- प्राभृत श्रुत - दृष्टिवाद के अन्दर प्राभृत प्राभृत नामक अधिकार है, उनमें से किसी एक का ज्ञान प्राभृत-प्राभृत श्रुत है। (१४) प्राभृत- प्राभृत समाम श्रुत- एक से अधिक प्राभूत-प्रवृतों के ज्ञान को प्रामृत - प्राभृत समास श्रुत कहते हैं । (१५) प्राभृत श्रुत-- जिस प्रकार कई उद्देशों का एक अध्ययन होता है उसी प्रकार कई प्राभूत-प्राभूतों का एक प्राभृत होता है | एक प्राभृत के ज्ञान को प्राभृत श्रुत कहते हैं ।
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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