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________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला - (२३) जैसे दानों में अभयदान श्रेष्ठ है, सत्य में अनवध (जिससे किसी को पीड़ा न हो) वचन श्रेष्ठ है और तप में ब्रह्मचर्य तप प्रधान है इसी तरह श्रमण भगवान् महावीर लोक में प्रधान हैं। ___ (२४)जैसे सब स्थिति वालों में * लवसप्तम अर्थात् सर्वार्थसिद्ध विमान वासी देव उत्कृष्ट स्थिति वाले होने से प्रधान हैं, सभाओं में सुधर्मा सभा और सब धर्मों में निर्वाण (मोक्ष) प्रधान है इसी तरह सर्वज्ञ भगवान् महावीर स्वामी से बढ़ कर दूसरा कोई ज्ञानी नहीं है अतः वे सभी ज्ञानियों से श्रेष्ठ हैं। (२५) जैसे पृथ्वी सब जीवों का आधार है इसी तरह भगवान महावीर स्वामी सब को अमयदान देने से और उत्तम उपदेश देने से सब जीवों के लिये आधार रूप हैं, अथवा पृथ्वी सब कुछ सहन करती है इसी तरह भगवान् भी सब परीषह और उपसर्गों को समभाव पूर्वक सहन करते थे। भगवान् कर्म रूपी मैल से रहित हैं। वे गृद्धिभाव तथा द्रव्य सन्निधि (धन धान्यादि) और भावसमिति (क्रोधादि) से भी रहित हैं। आशुप्रज्ञ भगवान महावीर आठ कर्मों का क्षय कर समुद्र के समान अनन्त संसार को पार करके मोक्ष को प्राप्त हुए हैं ! भगवान् प्राणियों को स्वयं अभय देते थे और सदुपदेश देकर दूसरों से अभय दिलाते थे इसलिये भगवान् अभयङ्कर हैं। श्रष्ट कर्मों का विशेष रूप से नाश करने से दे वीर एवं अनन्तज्ञानी हैं। (२६) भगवान् महावीर महर्षि हैं । उन्होंने आत्मा को मलिन करने वाले क्रोध, मान, माया और लोभ रूप चार कषायों को जीत लिया है। वे पाप (सावद्य अनुष्ठान) न स्वयं करते हैं न दूसरों से कराते हैं। * पूर्व भव में धर्माचरण करते समय यदि सात लव उनकी आयु अधिक होती तो वे केवलज्ञान प्राप्त कर अवश्य मोक्ष में चले जाते इसीलिये वे लवसप्तम कहे जाते हैं।
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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