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________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाली (३) श्रीसुधर्मास्वामी भगवान् महावीर स्वामी के गुणों का कथन करते हैं-श्रमण भगवान महावीर स्वामी संसार के प्राणियों के दुःख एवं कष्टों को जानते थे। वे आठ प्रकार के कर्मों का नाश करने वाले और सदा सर्वत्र उपयाग रखने वाले थे। वे अनन्त ज्ञानी और अनन्तदशी थे। भवस्थ केवली अवस्था में भगवान् जगत् के नंत्र रूप थे। उनके द्वारा कथित धर्म का तथा उनके धैर्य आदि यथार्थ गुणो का में वर्णन करूँगा! तुम ध्यान पूर्वक सुनो। (४) कवलज्ञानी भगवान महावीर स्वामी ने ऊचदिशा अघोदिशा और तिर्यगादशा में रहने वाले बस और स्थावर प्राणियों को अच्छी तरह दख कर उनक लिय कल्याणकारी धर्म का कथन किया है । तत्वां के ज्ञाता भगवान् ने पदार्थों का स्वरूप दीपक के समान नित्य ओर अनित्य दानों प्रकार का कहा है अथवा भगवान् संसार सागर में डूबते हुए प्राणियों के लिये द्वीप के समान हैं। (५) भगवान् महावार स्वामी समस्त पदार्थों को जानने और देखने वाले सर्वज्ञ और सर्वदशाथे । वे मूल गुण और उत्तर गुण युक्त विशुद्ध चारित्र का पालन करने वाले बड़ धार ओर प्रात्म स्वरूप म स्थित थे । भगवान् समस्त जगत् में सर्वश्रेष्ठ विद्वान् थे। वे बाह्य ओर आभ्यन्तर ग्रन्थि से रहित थे तथा निर्भय एव आयु (वर्तमान श्रायु से भिन्न चारों गति की आयु) से रहित थे, क्योकि कम रूपी बीज के जल जाने से इस भव के बाद उनकी किसी गति में उत्पत्ति नहीं हो सकती थी। (६) भगवान् महावीर स्वामी भूतिप्रज्ञ (अनन्त ज्ञानी) इच्छानुसार विचरने वाले, ससार सागर को पार करने वाले और परीषह तथा उपसर्गों को सहन करने वाले धीर और पूर्ण ज्ञानी थे। वे • सूर्य के समान प्रकाश करने वाले थे और जिस तरह अग्नि अन्धकार को दूर कर प्रकाश करती है उसी तरह भगवान् अज्ञानान्धकार
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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