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________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला वाली गायों के घी के समान लगता है वह सर्पिराश्रव लब्धि वाला कहलाता है अथवा जिन साधु महात्माओं के पात्र में श्राया हुआ रूखा सूखा आहार भी क्षीर, मधु, घृत आदि के समान स्वादिष्ट बन जाता है एवं उसकी परिणति भी क्षीरादि की तरह ही पुष्टिकारक होती है । साधु महात्माओं को यह शक्ति क्षीरमधुसर्पिराश्रय लब्धि कही जाती है । (२०) कोष्ठक बुद्धि लब्धि-जिस प्रकार कोठे में डाला हुआ धान्य बहुत काल तक सुरक्षित रहता है और उसका कुछ नहीं बिगड़ता, इसी प्रकार जिस लब्धि के प्रभाव से लब्धिधारी प्राचार्य के मुख से सुना हुआ सूत्रार्थ ज्यों का त्यों धारण कर लेता है और चिर काल तक भूलता नहीं है वह कोष्ठक बुद्धि लब्धि है। __ (२१) पदानुसारिणी लन्धि-जिस लब्धि के प्रभाव से सूत्र के एक पद का श्रवण कर दूसरे बहुत से पद बिना सुने ही अपनी बुद्धि से जान ले वह पदानुसारिणी लब्धि कहलाती है। (२२) बीजबुद्धि लब्धि-जिस लब्धि के प्रभाव से बीज रूप एक ही अर्थप्रधान पद, सीख कर अपनी बुद्धि से स्वयं बहुत सा विना सुना अर्थ भी जान ले वह बीजवुद्धि लब्धि कहलाती है। यह लब्धि गणघरों में सर्वोत्कर्ष रूप से होती है। वे तीर्थकर भगवान् के मुख से उत्पाद व्यय ध्रौव्य रूप त्रिपदी मात्र का ज्ञान प्राप्त कर सम्पूर्ण द्वादशाङ्गी की रचना करते हैं। (२३) तेजोलेश्या लब्धि-मुख से, अनेक योजन प्रमाण क्षेत्र में रही हुई वस्तुओं को जलाने में समर्थ, थति तीन तेज निकालने की शक्ति तेजोलेश्या लब्धि है । इसके प्रभाव से लब्धिधारी क्रोध चश विरोधी के प्रति इस तेज का प्रयोग कर उसे जला देता है। __(२४) आहारकलब्धि-प्राणी दया, तीर्थङ्कर भगवान् की ऋद्धि का दर्शन तथा संशय निवारण आदि प्रयोजनों से अन्य क्षेत्र में
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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