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________________ भी जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, छठा मांग नख ,केश आदि सभी में सुगन्ध आने लगती है और उनके स्पर्श से रोग नष्ट हो जाते हैं वह सौंषधि लब्धि कहलाती है। , (६) सम्भिन्नश्रोतो लब्धि-जो शरीर के प्रत्येक भाग से सुने उसे सम्भिन्नश्रोता कहते हैं। ऐसी शक्ति जिस लब्धि से प्राप्त हो उसे सम्भिन्नश्रोतो लब्धि कहते हैं। अथवा श्रोत्र, चक्षु, घ्राण आदि इन्द्रियाँ अपने अपने विषय को ग्रहण करती हैं किन्तु जिस लब्धि के प्रभाव से किसी भी एक इन्द्रिय से दूसरी सभी इन्द्रियों के विषय ग्रहण किये जा सकें यह सम्भिन श्रोतो लब्धि है। अथवा जिस लब्धि के प्रभाव से लब्धिधारी बारह योजन में फैली हुई चक्रवर्ती की सेना में एक साथ बजने वाले शंख, भेरी, काहला, ढक्का, घंटा आदि वायविशेषों के शब्द पृथक पृथक रूप से सुनता है वह सम्मिन्नश्रोतो लब्धि है। (७) अवधि लब्धि-जिस लब्धि के प्रभाव से अवधिज्ञान की प्राप्ति होती है उसे अवधि लब्धि कहते हैं । (E) ऋजुमति लब्धि-ऋजुमति और विपुलमति मनःपर्ययज्ञान के भेद हैं । ऋजुमति मनःपर्यय ज्ञान वाला अढाई द्वीप से कुछ कम (अढ़ाई अंगुल कम) क्षेत्र में रहे हुए संज्ञी जीवों के मनोगत भाव सामान्य रूप से जानता है। जिस लब्धि से ऐसे ज्ञान की प्राप्ति हो वह ऋजुमति लब्धि है। () विपुलमति लब्धि-विपुलमति मनःपर्यय ज्ञान वाला अढ़ाई द्वीप में रहे हुए संज्ञी जीवों के मनोगत भाव विशेष रूप से स्पष्टतापूर्वक जानता है। जिस लब्धि के प्रभाव से ऐसे ज्ञान की प्राप्ति हो वह विपुलमति लब्धि है। नोट-अवधि ज्ञान का स्वरूप इसी ग्रन्थ के प्रथम भाग में बोल नं. १३ तथा ३७५ में और ऋजुमति विपुलमति मनःपर्ययज्ञान का स्वरूप बोल नं० १४ में दिया गया है।
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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