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________________ २७२ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला मन्त्री ने समझ लिया कि पुत्र का खरा दर्द इसी को है इसलिये यही इसकी सच्ची माता है। तदनुसार उसने उस स्त्री को पुत्र दे दिया और उसी को घर की मालकिन कर दी। दूसरी स्त्री तिरस्कार पूर्वक वहाँ से निकाल दी गई । यह मन्त्री की औत्पत्तिकी बुद्धि थी। . (१८) मधुलिक्थ (मधुच्छत्र)-एक नदी के दोनों किनारों पर धीवर (मछुए) लोग रहते थे। दोनों किनारों पर बसने वाले धीवरों में पारस्परिक जातीय सम्बन्ध होने पर भी आपस में कुछ वैमनस्य था। इसलिये उन्होंने अपनी स्त्रियों को विरोधी पक्ष वाले किनारे पर जाने के लिये मना कर रखा था। किन्तु जब धीवर लोग काम पर चले जाते थे तव स्त्रियाँ दूसरे किनारे पर चली जाती थीं और आपस में मिला करती थीं। एक दिन एक धीवर की स्त्री विरोधी पक्ष के किनारे गई हुई थी। उसने वहाँ से अपने घर के पास कुञ्ज में एक मधुच्छन (शहद से भरा हुआ मधुमक्खियों का छत्ता) देखा । उसे देख कर वह घर चली आई। कुछ दिनों बाद धीवर को औषधि के लिये शहद की आवश्यकता हुई । वह शहद खरीदने वाजार जाने लगा तो उसकी स्त्री ने उसको कहा-बाजार से शहद क्यों खरीदने हो ? घर के पास ही तो मधुच्छन है । चलो, मैं तुमको दिखाती हूँ। यह कह कर वह पति को साथ लेकर मधुच्छा दिखाने गई। किन्तु इधर उधर हूँढने पर भी उसे मधुच्छत्र दिखाई नहीं दिया। तब स्त्री ने कहा-उस तीर से बराबर दिखाई देता है । चलो, वही चलें । वहाँ से मैं तुम्हें जरूर दिखा दूँगी। यह कह कर वह पति के साथ दूसरे तीर पर आई और वहाँ से उसने मधुच्छत्र दिखा दिया । इससे धीवर ने अनायास ही यह समझ लिया कि मेरी स्त्री मना करने पर भी इस किनारे आती जाती रहती है । यह उसकी औत्पत्तिकी बुद्धि थी। . (१६) मुद्रिका-किसी नगर में एक पुरोहित रहता था। लोगों
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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