SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 233
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जैन सिद्धान्त वोल संग्रह, छठा भाग २६३ में वहम हो गया कि यह गिरगिट मेरे पेट में चला गया है। इसी बहम के कारण वह अपने आप को रोगी समझ कर प्रतिदिन दुर्वल होने लगा। एक समय वह एक वैद्य के पास गया । वैद्य ने उसको बीमारी का सारा हाल पूछा । सेठ ने आदि से अन्त तक सारा वृत्तान्त कह सुनाया। वैद्य ने अच्छी तरह परीक्षा करके देखा किन्तु उसे कोई बीमारी प्रतीत नहीं हुई । वैद्य को यह निश्चय हो गया कि इसे केवल भ्रम हुआ है। कुछ सोच कर चैद्य ने कहामैं तुम्हारी बीमारी मिटा देगा किन्तु सौ रुपये लूगा । सेठ ने वैद्य की वान स्वीकार कर ली। वैद्य ने उसको विरेचक औषधि दी। इधर उसने लाख के रस से लिपटा हुआ गिरगिट मिट्टी के वर्तन में रख दिया। फिर उसी मिट्टी के बर्तन में सेठ को शौच जाने को कहा । शौच निवृत्ति के पश्चात् वैद्य ने सेठ को मिट्टी के बर्तन में पड़े हुए गिरगिट को दिखला कर कहा-देखो! तुम्हारे पंट से गिरगट निकल गया है। उसे देख कर सेठ की शंका दूर हो गई । वह अपने आपको नीरोग अनुभव करने लगा जिससे थोड़े ही दिनों में उसका शरीर पहले की तरह पुष्ट हो गया । वैद्य की यह अ.त्पत्तिकी बुद्धि थी। (७) काक-बैनातट ग्राम में एक समय एक बौद्ध भिक्षुने किसी जैन साधु से पूछा-तुम्हारे अर्हन्त सर्वज्ञ हैं और तम उनकी सन्तान हो तो बतलायो इस गॉव में कितने कौए हैं ? उसका शठतापूर्ण प्रश्न सुन कर जैन साधु ने विचारा कि सरल भाव से उत्तर देने से यह नहीं मानेगा। इस धूर्त को धूर्तता से ही जवाब देना चाहिए। ऐसा सोच कर उसने अपने बुद्धि दल से जवाब दिया कि इस गॉव में साठ हजार कौए हैं। बौद्ध भिक्षु ने कहा यदि इससे कम ज्यादा हो तो ? जैन ने उत्तर दिया-यदि कम हों तो जानना चाहिये कि यहाँ के कौए वाहर मेहमान गये हुए हैं और यदि
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy