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________________ '२५८ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला की ओर पत्थर फेंकना शुरू किया। वन्दर कुपित हो गये और उन्होंने पत्थरों का जवाब आम के फलों से दिया। इस प्रकार पथिकों का अपना प्रयोजन सिद्ध हो गया । ग्राम प्राप्त करने की यह पथिकों की औत्पत्तिकी बुद्धि थी। (४) खुड्डग (अंगूठी)-मगध देश में राजगृह नाम का सुन्दर और रमणीय नगर था। उसमें प्रसेनजित नाम का राजा राज्य करता था उसके बहुत से पुत्र थे। उन सब में श्रेणिक बहुत बुद्धिमान् था। उसमें राजा के योग्य समस्त गुण विद्यमान् थे। दूसरे राजकुमार ईवश कहीं उसे मार न दें, यह सोच कर राजा उसे न कोई अच्छी वस्तु देता था और न लाड प्यार ही करता था। पिता के इस व्यवहार से खिन्न होकर एक दिन श्रेणिक, पिता को सूचना दियेषिनाही, वहाँ से निकल गया चलते चलते वह बेन्नातट नामक नगर में पहुंचा । उस नगर में एक सेठ रहता था। उसका वैभव नष्ट हो चुका था । श्रेणिक उसी सेठ की दूकान पर पहुँचा और वहाँ एक तरफ बैठ गया। सेठ ने उसी रात स्वप्न में अपनी लड़की नन्दा का विवाह किसी रत्नाकर के साथ होते देखा था। यह शुभ स्वप्न देखने से सेठ विशेष प्रसन्न था। जब सेठ दूकान पर आकर बैठा तो श्रेणिक के पुण्य प्रभाव स सेठ के यहां कई दिनों की खरीद कर रखी हुई पुरानी चीजें बहुत ऊँची कीमत में विकी। इसके सिवाय रत्नों की परीक्षा न जानने वाले लोगों द्वारा लाये हुए कई बहुमूल्य रत्न भी बहुत थोड़े मूल्य में सेठ को मिल गये । इस प्रकार अचिन्त्य लाभ देख कर सेठ को बड़ी प्रसन्नता हुई। इसका कारण सोचते हुए उसे ख्याल आया कि दुकान पर बैठे हुए इस महात्मा पुरुष के अतिशय पुण्य का ही यह प्रभाव प्रतीत होता है। विस्तीर्ण ललाट और भव्य आकार . इसके पुण्यातिशय की साक्षी दे रहे हैं। मैंने गत रात्रि में अपनी कन्या
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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