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________________ २५६ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला (२) पणित (शर्त, होड)--एक समय कोई ग्रामीण किसान अपने गांव से ककड़ियां लेकर बेचने के लिये नगर को गया। द्वार पर पहुँचते ही उसे एक धूर्त नागरिक मिला । उसने ग्रामीण को भोला समझ कर ठगना चाहा । धूर्त नागरिक ने ग्रामीण से कहायदि मैं तुम्हारी सत्र ककड़ियां खा जाऊँ तो तुम मुझे क्या दोगे ? ग्रामीण ने कहा-यदि तुम सब ककड़ियां खा जाओ तो मैं तुम्हें इस द्वार में न आवे ऐसा लड्डु इनाम दूंगा। दोनों में यह शर्त तय हो गई और उन्होंने कुछ आदमियों को साक्षी बना लिया। इसके बाद धूर्त नागरिक ने ग्रामीण की सारी ककड़ियां जूंठी करके (थोड़ी थोड़ी खा कर) छोड़ दी और ग्रामीण से कहा कि मैंने तुम्हारी सारी ककड़ियां खा ली हैं, इसलिये शर्त के अनुसार अब मुझे इनाम दो । ग्रामीण ने कहा-तुमने सारी ककड़ियां कहां खाई हैं ? इस पर नागरिक बोला-मैंने तुम्हारी सारी ककड़ियाँ खा ली हैं। यदि तुम्हें विश्वास न हो तो चलो, इन ककड़ियों को बेचने के लिये बाजार में रखो। ग्राहकों के कहने से तुम्हें अपने आप विश्वास हो जायगा । ग्रामीण ने यह बात स्वीकार की और सारी ककड़ियाँ उठा कर बाजार में बेचने के लिये रख दी। थोड़ी देर में ग्राहक आये । ककड़ियाँ देख कर वे कहने लगे-ये ककड़ियां. तो सभी खाई हुई हैं । ग्राहकों के ऐसा कहने पर ग्रामीण तथा साक्षियों को नागरिक की बात पर विश्वास हो गया । अब ग्रामीण घबराया कि शर्त के अनुसार लड्डु कहां से लाकर दूँ ? नागरिक से अपना पीछा छुड़ाने के लिये उसने उसे एक रुपया देना चाहा किन्तु धूर्त कहाँ राजी होने वाला था । आखिर ग्रामीण ने सौ रुपया तक देना स्वीकार कर लिया किन्तु धूर्त इस पर भी राजी न हुआ। उसे इससे भी अधिक मिलने की आशा थी । निदान ग्रामीण सोचने लगा-धूर्त लोग सरलता से नहीं मानते । वेधूर्तता सेही मानते
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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