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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, छठा भाग २२६ www चयछक्क मिंदियाणं च निग्गहो भावकरण सच्चं च । खमया विरागया वि य, मण माईणं निरोहो य ॥ कायाण छक्क जोगाण जुनया वेयणा हियासणया । तह मारणंतिया हियासणया य एए अणगार गुणा ॥ भावार्थ-(१-५) अहिसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह रूप पाँच महाव्रतों का सम्यक् पालन करना । (६) रात्रिभोजन का त्याग करना । (७-११) श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घाणेन्द्रिय रसनेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय इन पॉच इन्द्रियों को वश में रखनाअर्थात् इन्द्रियों के इष्ट विषयों की प्राप्ति होने पर उनमें रागन करना और अनिष्ट रिपयों से द्वेप न करना। (१२)भाव सत्र अर्थात् अन्तःकरण की शुद्धि (१३) करण सत्य, अर्थात् वस्त्र, पात्र आदि की प्रतिजेखना तथा अन्य वाह्य क्रियाओं को शुद्ध उपयोग पूर्वक करना (१४) क्षमा-क्रोध और मान का निग्रह अर्थात् इन दोनों को उदय में ही न आने देना (१५) विरागता-निर्लोभता अर्थात् माया और लोभ को उदय में ही न आने देना (१६)मन की शुभ प्रवृत्ति (१७) वचन की शुभ प्रवृत्ति (१८) काया की शुभ प्रवृत्ति (१६-२४) पृथ्वीकाय, अष्काय, तेउकाय, वायुकाय, वनस्पति काय और उसकाय रूप छः काय के जीवों की रक्षा करना (२५) योग सत्य-मन, वचन और काया रूप तीन योगों की अशुभ प्रवृत्ति को रोक कर शुभ प्रवृत्ति करना (२६) वेदनातिसहनता शीत, ताप आदि वेदना को समभाव से सहन करना (२७) मारणान्तिकातिसहनता-मृत्यु के समय आने वाले कष्टो को समभाव से सहन करना और ऐसा विचार करना कि ये मेरे कल्याण के लिये हैं। समवायांग सूत्र में सत्ताईस गुण ये हैं-पॉच महाव्रत, पाँच इन्द्रियों का निरोध, चार अपायों का त्याग, भाव मत्य, करण सत्य, योग सत्य, क्षमा, विगगता, मन समाहरणता, वचन समा
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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