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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, छठा भाग २२५ छब्बीसवां बोल संग्रह ६४३-छब्बीस बोलों की मर्यादा सातवाँ उपभोग परिभोग परिमाण नाम का व्रत है। एक बार भोग करने योग्य पदार्थ उपभोग कहलाते हैं और बार बार भोगे जाने वाले पदार्थ परिभोग कहलाते हैं (भगवती शतक ७ ३८२ टीका श्राव० अ०६ सूत्र ७) उपभोग परिभोग के पदार्थों की मर्यादा करना उपभोग परिभोग परिमाण व्रत कहलाता है। इस व्रत में छब्बीस पदार्थों के नाम गिनाये गये हैं। उन के नाम और अर्थ नीचे दिये जाते हैं। (१) उल्लणियाविहि-गीले शरीर को पोंछने के लिए रुमाल (टुयाल, अंगोछा) आदि वस्त्रों की मर्यादा करना (२)दन्तवणविहिदांतों को साफ करने के लिए दतान प्रादि पदार्थों के विषय में मर्यादा करना (३) फलविहि-चाल और सिर को स्वच्छ और शीतल करने के लिये प्रांवले आदि फलों की मर्यादा करना (४) अभंगणविहिशरीर पर मालिश करने के लिये तैल आदि की मर्यादा करना (५) उव्वट्टणविहि-शरीर पर लगे हुए तेल का चिकनापन तथा मैल को हटाने के लिए उबटन (पीठी श्रादि) की मर्यादा करना (६) मज्जणविहि-स्नान के लिए स्नान की संख्या और जल का परिमाण करना (७) वत्थविहि-पहनने योग्य वस्त्रों की मर्यादा करना (८) विलेवणविहि-लेपन करने योग्य चन्दन, केसर, कुंकुम श्रादि पदार्थों की मर्यादा करना (6) पुप्फविहि-फूलों की तथा फूल माला की मर्यादा करना (१०) श्राभरणविहि-आभूपणों (गहनों) की मर्यादाकरना(११)धूत्रविहि-धूप के पदार्थों की मर्यादा करना (१२) पेज्जविहि-पीने योग्य पदार्थों की मर्यादा करना बार बार भोगे जाने वाले पदार्थ उपमाग और एक ही बार भागे नाने वाले पदार्य पारभाग हैं । टीकाकारों ने ऐसा अर्थ भी किया है । (उपासकदशागन०१टीका)
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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