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________________ [प] पूर्वानुपूर्वी कहते हैं। अन्तिम भंग ५, १, ३, २,१ इस प्रकार उल्टे क्रम से है इसलिये यह पश्चात् आनुपूर्वी कहलाता है। शेष मध्य के. ११८ भंग अनानुपूर्वी के हैं। आनुपूर्वी में कुल बीस कोष्ठक हैं और एक एक कोष्ठक में छः छः भग हैं। ५ अंकों का एक भंग है इसलिये ६ भगों में अर्थात् एक कोष्ठक मे तीस अक रहते हैं। प्रत्येक कोष्ठक में चौथे पाँचवे खाने के अन्तिम दो अंक कायम रहते है। और प्रारम्भ के तीन · खानों में परिवर्तन होता रहता है। बीसों कोष्ठकों के अन्तिम दो दो अंकों का यहा एक यन्त्र दिया जाता है पहले चार कोष्ठकों के अन्तिम दो अंक | ४५ ३५ २५ .५ पांचवें से आठवें , ५४ ३४ २४ १४ नवे से बारहवें , | ५३ ४३ २३ १३ तेरहवे से सोलहवे , ५२ ४२ ३२ १२ सत्रहवें से बीसवें , " ५१ ४१ ३१ २१ यन्त्र भरने की विधि यह है। आनुपूर्वी के पहले कोष्ठक के अन्तिम अंक ४५ हैं । पहले कोष्ठक में चौथे पांचवे खाने में ये स्थायी रहेंगे। पहले कोष्ठक के पूरे हो जाने पर दूसरे कोष्ठक में दस घटा कर अन्तिम अंक ३५ रखना चाहिये । इसी प्रकार तीसरे और चौथे कोष्ठकों में भी दस दस घटाकर क्रमशः २५ और १५ अंक रखने चाहिये। ये चार कोष्ठक पूरे हो जाने पर यन्त्र की दूसरी पंक्ति में यानी पांचवें कोष्ठक में अन्तिम अक ५४ रखना चाहिये । ५४ में दस घटाने से ४४ रहेंगे। किन्तु चूंकि एक भंग में दो अंक एक से नहीं आते इसलिये छठे कोष्ठकमें दस के बदले बीस घटाकर अन्तिम अंक ३४ रखना चाहिये, पर ४४ न रखना चाहिये । सातवे और आठवे कोष्ठक में दस दस घटा कर क्रमशः २४ और १४ अंक रखने चाहिये । यन्त्र की तीसरी चौथी और पाचवीं पंक्ति में क्रमशः नवे कोष्ठक के अन्तिम अंक ५३, तेरहवे के ५२ और सत्रहवें के ५१ हैं। इनके आगे के तीन तीन कोष्ठकों में
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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