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________________ १६२ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला और अरिष्टनेमिनाथ स्वामी को क्रमशः पुरिमताल नगर और रैवतक पर्वत पर केवलज्ञान उत्पन्न हुआ । शेष तीर्थंकरों को अपने अपने जन्म स्थानों में केवलज्ञान उत्पन्न हुआ । ( सप्ततिशत० ६० द्वार) केवलज्ञान तप अट्टम भत्ततम्मि, पासोसहमलिहि 3 नेमणं । वासुपुज्जस्स चउत्थेण छट्टभत्तेण ' उ सेसाणं ॥ भावार्थ - श्री पार्श्वनाथ स्वामी, ऋषभदेव स्वामी, मल्लिनाथस्वामी, और अरिष्टनेमिनाथ स्वामी को अष्टमभक्त - तीन उपवास के अन्त में तथा वासुपूज्य स्वामी को उपवास तप में केवलज्ञान उत्पन्न हुआ । शेष तीर्थंकरों को वेले के तप में केवलज्ञान उत्पन्न हुआ । ' (था० म० १ खड गा० २७७) 21 केवलज्ञान वेला' : गाणं उसहाईणं, पुव्त्ररहे पच्छिमएह वीरस्स | : भावार्थ - ऋषभदेव स्वामी आदि तेईस तीर्थंकरों को प्रथमप्रहर में केवलज्ञान उत्पन्न हुआ और चौवीसवें तीर्थंकर श्री महावीर भगचान् को अन्तिम प्रहर में केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। ( सप्ततिशत० ६५ द्वार) तीर्थोत्पत्ति तित्थं चाउव्वण्णो, संघो सो पढमए समोसरणे । उपयोउ जिणाणं, वीरजिदिस्स बीयम्मि || भावार्थ - ऋषभदेव स्वामी आदि तेईस तीर्थंकरों के प्रथम समव सरण में ही तीर्थ (प्रवचन) एवं चतुर्विध संघ उत्पन्न हुए। श्री वीर भगवान् के दूसरे समवसरण में तीर्थ एवं संघ की स्थापना हुई । ( श्र० म० १ खंड गा० २८७) 1 निर्वाण तप 1 निव्वाणमंत किरिया सा चोइसमेण पढमणाहस्स । सेसाखं मासिए वीरजिदिस्स छट्टणं ॥ १ ॥ भावार्थ -- आदिनाथ श्री ऋषभदेव स्वामी की निर्वाण रूप
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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