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________________ श्री जैन सिद्धान्त वोल संग्रह, छठा भाग १८६ वरतवियकणयगोरा सोलस तित्थंकरा सुर्णेपव्वा ॥ एसो वणविभागो चंउवीसाए जिणिदायं ॥ भावार्थ- पद्मप्रभ स्वामी और वासुपूज्य स्वामी रक्त वर्ण के थे । चन्द्रप्रभस्वामी और सुविधिनाथ स्वामी चन्द्रमा के समान गौर वर्ण के थे। श्री मुनिसुव्रत स्वामी और नेमिनाथ स्वामी का कृष्ण वर्ण था तथा श्रीपार्श्वनाथ स्वामी और मल्लिनाथ स्वामी का नील वर्ण था। शेप तीर्थकरों का वर्ण तपाये हुए सोने के समान था, यह चौबीसों जिनेश्वर देवों का वर्ण विभाग हुआ | (ग्रा० ६० गाथा ३७६, ३७७ ) ( प्रवचन द्वार ३० ) तीर्थ का विवाह भगवान् मल्लिनाथ स्वामी और अरिष्टनेमि स्वामी श्रविवाहित रहे। शेपवाईम तीर्थकरों ने विवाह किया था । कहा भी है P मल्लि नेमि सुसु तेसि विवाहो य भोगफला । श्रथात्-श्री मल्लिनाथ स्वामी और श्ररिष्टनेमि स्वामी के सिवाय शेष तीर्थकरों का विवाह हुआ क्योंकि उनके भोगफल वाले कर्म शेष थे । ( सप्ततिशत स्थान प्रकरण ५३ द्वार, गाथा ३४) दीक्षा की अवस्था चीरो अरिनेमी पासो मल्ली य चासुपुज्जो य । पदमवए पव्वइया सेसा पुर्ण पच्छिम वयम्मि ं ॥ भावार्थ - भगवान् महावीर स्वामी, श्ररिष्टनेमि स्वामी, पार्श्वनाथ स्वामी, मल्लिनाथ स्वामी और वासुपूज्य स्वामी हुन पाँचों तीर्थंकरों ने प्रथम वय - कुमारावस्था में दीक्षा ली। शेष तीर्थंकर पिछली वय में प्रत्रजित हुए । ( श्रा० ८० गा० २२६) गृहवास में और दीक्षा के समय ज्ञान मड़ सुय श्रहि तिरयाणा जाव गिहे पच्छिम भवा । पिछले भव से लेकर यावत् गृहवास में रहने तक सभी तीर्थंकरों के मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान ये तीनों ज्ञान होते हैं। ( सप्ततिशत० द्वार ४४ )
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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