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________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला wmniam www RAN ६.२३ - साधु के लिए उतरने योग्य तथा अंयोग्य स्थानं तेईस अाचाराङ्ग सूत्र के द्वितीय श्रुतस्कन्ध, प्रथमचूला, द्वितीय अध्ययन, के द्वितीय उद्देशे में नव प्रकार की क्रिया वाली वसतियाँ ताई गई हैं। वे इस प्रकार हैं- : :, , कालइकवट्ठाण, अभिता चेव , प्रणभिकता. य.।' . बज्जा 'य : महावज्जा; सावज्जा : महप्पकिरिया य . ' __ अर्थात्-(१) कालातिक्रान्त क्रिया (२) उपस्थान क्रिया.(३) अभिक्रान्त क्रिया(४)अनंभिक्रान्त क्रिया (1) वयक्रिया (वज्रक्रिया) (६)महावर्ण्य क्रिया(महावज्रक्रिया)(७) सावध क्रियां, (८) महा"सावध क्रिया (ह) अल्पक्रिया इस प्रकार वसति के नौ भेद हैं। इनमें से अभिक्रान्त क्रिया और अल्पक्रिया वाली वसतियों में साधु कोरहना कल्पता है, बाकी में नहीं। इनका स्वरूप नीचे लिखे अनुसार है.. (१) कोलातिक्रान्त क्रिया-आगन्तार (गाँव से बाहर मुसाफिरों के ठहरने के लिए बना हुआ-स्थान), आरामागार (बगीचे में बनी हुआ मकान), पर्यावसथ (मठ) आदि स्थानों में आकर जो साधु मांसकल्प या चतुर्मास कर चुके हों उनमें वें फिर मासकल्प या चतुमोस न करें। यदि कोई साधु उन स्थानों में मासकल्य या चतुर्मास करके फिर वहीं ठहरा रहे तो कालातिक्रम दोष होता है और वह स्थान कालांतिकान्त क्रिया चाली वसति कहा जाता है। साधु को इसमें ठहरना नहीं कल्पता : (२) उपस्थान क्रिया ऊपर लिखे स्थानों में मासंकल्प या चतुर्मास करने के बाद उससे 'दुगुना या तिगुना समय दूसरी जंगह विताए विना साधु फिर उसी स्थान में आकर ठहर जाय
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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