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________________ श्री जैन सिद्धान्त पोल-संग्रह छठी भाग १४६ कि इस पूजा,से:जिनशासन की लंधुता प्रगट होती है। इस तरह भाच,सम्यस्त्वधारी तो लोकदृष्टि से भी कुंदेवों को. नहीं मानता,और न उसे उन्हें मानना ही चाहिये। ___(श्राद्ध प्रतिक्रमण-रत्न शैलर परिकृत विवरण पृ.३३ सम्यक्त्वाधिकार ) :-(१५),प्रश्न- चतुर्यभक्त प्रत्याख्यान का क्या मतलब है ? उत्तर---जिस तप में उपयोस के पहले दिन एक भक्त का, उपवास के दिन दो भक्त का और पारणे के दिने एक भक्त का त्याग किया, जाता है उसे 'चतुर्थ भक्त तप कहते हैं । पर आज कल की प्रवृति के अनुसार-चतुर्थ भल; उपवास.के अर्थ में,रूढ़ है। प्रत्याख्यान कराने वाले और लेने वाले दोनों चतुर्थ भक्त' का अर्थ उपवास समझ कर ही त्याग कराने और करते हैं, इसलिए उपवास :दिवस के दिन रात के दो भक्त का त्याग करना ही इस प्रत्याख्यान का अर्थ. है। यही बात भगवती सूत्र शतक २ उद्देशे १ सूत्र६३ की ट्रीका में कही है। चतुर्थ भक्तं यावद्नं त्यज्यते यत्र तचतुर्थम् इयंचोपवासस्य संज्ञा, एवं पष्ठादिकमुपवास द्वयादेरिति' अर्थात् जिसमें चौथे भक्त तक आहार कात्याग किया जाय वह चतुर्थ भक्त है ।.यह उपवास की संज्ञा है। इसी प्रकार पठभक्त आदि भी दो उपवास आदि की संज्ञा है। - म्यानांग सूत्र ३ उ०३ मं, १८२ की टीका में भी यही स्पष्टीकरण. मिलता है । टीका को प्राशय यह है-जिसे तप में पहले दिन सिर्फ एक, उपवास के दिन दो और पारणे के दिन एक भक्त का त्याग होता है वह चतुर्थ भक्त' है.। आगे चलकर टीकाकार कहते हैं कि यह तो चत् भक्त शब्द का व्युत्पत्ति अर्थ हुआ! चतुर्थभक्त आदि शब्दों की प्रवृत्ति तो उपवास आदि में है.i अन्तकृदंशा इवें वर्ग के प्रथम अध्ययन में रत्नावली तप का वर्णन है। उसकी टीका में 'चतुर्थ मेकेनोपचासेन, पष्ठ द्वाभ्यामष्टमं त्रिमिलिंखा है अर्थात् ..चतुर्थ का मतलब एक उपवास
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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