SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जैन सिद्धान बोल संग्रह, छठा भाग युद्ध करने के लिये यहाँ आ रहा है। अब आप लोगों की क्या सम्मत है ?क्या विहल्लकुमार को वापिस भेज दिया जाय या युद्ध . कियाजाय ? मन राजाओं ने एकमत होकर जवाब दिया-नित्र ! हम क्षत्रिय है ' शरणागत की रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है। विहल्लकुमार. का पक्ष न्याय संगत है और वह हमारी शरण में श्रा चुका है। इसलिए हम इसे कोणिक के पास नहीं भेज सकते। , उनका कथन सुनकर चेड़ा राजा ने कहा-जब आप लोगों का यही निश्चय है तो याप. लोग अपनी अपनी सेना लेकर वापिस शीव पधारिये। तत्पश्चात् वे अपने अपने राज्य में गये और सेना लेकर वापिस चेड़ा राजा के पास साये । चेड़ा'राजा भी तय्यार हो गया । उन उनीसों राजाओं की सेना में सत्तावन हजार हाथी, सत्तावन हजार घोड़े, सत्तावन हजार स्थ और सत्तावन कोटि पदाति थे। . ... .. दोनों ओर की सेनाएं. युद्ध में आ. डटी घोर संग्राम होने लगा। काल, मुमाल ग्रादि दसों भाई दस दिनों में मारे गये तिर कोणिक ने तेले का तप कर अपने पूर्वभव के मित्र देवों का स्मरण किया। जिसमें शकेन्द्र और चमरेन्द्र उसकी सहायता करने के लिये गये। पहले महाशिला संग्राम हुया जिसमें चौरासी लाख श्रादी मारे गये । दूसरां रथमूसल संग्राम हुमा उममें छयानवे लाख मनुष्य मारे गये। उनमें से वरुणं नाग नतुया, और उसका मिक्रमशः देव और मनुप्य गति में गयें। (भगवती श७ उ०६) वाकी सब जीव नरक और तिर्यश्च गति में गये। . ' देव शक्के के आगे चेड़ा सजा की महान् शहि भी काम न श्राई। .परास्त होकर विशाला नगरी में 'धुंस गये और नगरी के दरवाजे, बन्द करवा दिये 1 कोणिक राजा.ने नगरी के कोट, को गिराने की बहुत कोशिश की किन्तु वह उसे न गिरा सका।
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy