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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पांचवां भाग राजओं की जो संख्या हो उसे उसी से गुणा करने पर उस खण्ड के वर्गखण्ड राजुओं की संख्या निकल आती है, जैसे लोकान्त खण्ड में चार खण्ड राजू हैं, उनका वर्ग १६ हो जायगा। इसी प्रकार ५६ खण्डों के वर्गों को मिलाने पर १५२६६ वर्ग खण्ड राजू होंगे। एक घन राजू में चौंसठ खण्ड राज होते हैं । इस लिए ऊपर की संख्या को ६४ से भाग देने पर २४६ निकल आते हैं। ___ ऊर्ध्वलोक के पहले ६ खण्डों में अर्थात् डेढ़ राजू तक पहले दो देवलोक हैं- सौधर्म और ईशान । उसके ऊपर चार खण्ड अर्थात् एक राज में सनत्कुमार और माहेन्द्र दो देवलोक हैं। उस के ऊपर दस खण्ड अर्थात् ढाई राज में ब्रह्मलोक, लान्तक, शुक्र और सहस्रार नामक चार देवलोक हैं। उसके ऊपर चार खण्ड अर्थात् एक राजू में आणत,प्राणत,पारण और अच्युत नामक चार देवलोक हैं। उसके बाद चार खण्डों में अर्थात् सब से ऊपर वाले राज में क्रमशःनववेयफ,पाँच अनुत्तर विमान और सिद्ध शिला (प्रवचनमारोद्धार द्वार १४३, गाथा ६०-६१७ ) ( सभाष्य तत्त्वार्थाधिगम सुत्र, तृतीय अध्याय ) (भगवती शतक १३ उद्देशा ४) (भगवती गतक ५ उद्देशा ६) ८४६-मार्गणास्थान चौदह __ मार्गणा अर्थात् गुणस्थान, योग, उपयोग आदि की विचारणा के स्थानों (विपयों)को मार्गणास्थान कहते हैं। गोम्मटसार के जीवकांड की गाथा १४० में इसकी व्याख्या नीचे लिखे अनुमार दी है जाहि व जासु व जीवा, मग्गिज्जंते जहातहा दिहा। ताओ चोदस जाणे, सुयणाणे मरगणा होति ॥ अर्थात-जिन पदार्थों के द्वागअथवा जिन पर्यायों में जीव की विचारणा सर्वज्ञ की दृष्टि के अनुसार की जाय वे पर्याय यार्गणा स्थान हैं। वे चौदह है
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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