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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पांचवां भाग आठ हैं। दूसरे खण्ड में चौड़ाई ढाई राजू अर्थात् दस खण्डराजू है। तीसरे और चौथे में तीन राजू अर्थात् १२ खण्डरज्जु हैं । (१०) नवें राजू के ऊपर दसवें राजू के नीचे वाले श्राधे हिस्से अर्थात् दो खण्डों में चौड़ाई ४ राजू अर्थात् १६ खण्डराजू । ऊपर के दो खण्डों में पाँच राजू अर्थात् २० खण्ड रज्जु है । (११) ग्यारहवें राजू के नीचे वाले आधे हिस्से में पाँच राजू चौड़ाई है और ऊपर वाले आधे हिस्से में चार राजू चौड़ाई है। ( १२ ) बारहवें राजू के नीचे वाले दो खण्डों में चौड़ाई तीन राजू है और ऊपर वाले दो खण्डों में बढ़ाई राज है । ५१ (१३) तेरहवें राजू के पहले एक खण्ड में अढ़ाई राजू चौड़ाई और ऊपर के तीन खण्डों में दो राजू है। (१४) चौदहवें राजू के नीचे वाले दो खण्डों में डेढ़ राजू चौड़ाई है और ऊपर वाले दो खण्डों में एक राजू है । धोलोक में कुल ५१२ खण्डरज्जु हैं । अधोलोक के सात राजुओं के अट्ठाईस भाग करने पर प्रत्येक भाग में नीचे लिखे अनुसार खण्ड हैं-- पहले के चारों में अट्ठाईस अट्ठाईस (कुल ११२ ) । पाँचवें से लेकर आठवें तक छब्बीस छब्बीस ( कुल १०४ ) | नवें से लेकर वारहवें तक चौवीस चौवीस ( कुल ६६) । तेरहवें से लेकर सोलहवें तक बीस बीस ( कुल ८० ) । सतरहवें से लेकर बीसवें तक सोलह सोलह (कल ६४) । इक्कीसवें से लेकर चौवीसर्वे तक दस दस (कुल ४० ) । पच्चीसवें से लेकर अट्ठाईसवें तक चार चार (कुल १६) । अट्ठाईस विभागों अर्थात् पूरे सात राजनों के सब विभागों को मिला कर ५१२ खण्ड राज हो जाते हैं। ऊर्ध्वलोक में ३०४ खण्ड रज्जु होते हैं। उसके भी अट्ठाईस खण्ड करने पर प्रत्येक खण्ड में खण्डरज्जु नीचे लिखे अनुसार हैंपहले भाग में ४, दूसरे में ४, तीसरे में ६, चौथे में ६, पाँचवें में
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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