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________________ श्री मेठिया जैन ग्रन्थमाला ऊपर जो चौदह प्रकार के पदार्थ बताये गये हैं इन में से प्रथम के आठ पदार्थ तो ऐसे हैं, जिन्हें साधु महात्मा लोग स्वीकार करने के पश्चात् दान देने वाले को वापिस नहीं लौटाते। शेष छः द्रव्य ऐसे हैं जिन्हें साधु लोग अपने काम में लेकर वापिस लौटा भी देते हैं। (पूज्यश्री जवाहिरलालजी म. कृत श्रावक के चार शिक्षाबत ) ८३३- स्थविर कल्पी साधुओं के लिए चौदह प्रकार का उपकरण संयम की रक्षा के लिए स्थविर कल्पीसाधुओं को नीचे लिखे अनुसार १४ प्रकार का वस्त्र पात्र आदि उपकरण रखना कल्पता है। (१)पात्र-गृहस्थों के घर से भिक्षा लाने के लिए काठ, मिट्टी या तुम्बी वगैरह का वर्तन । मध्यम परिमाण वाले पात्र का घेरा तीन विलांत और चार अंगुल होता है। देश काल की आवश्यकता के अनुसार बड़ा या छोटा पात्र भी रक्खा जा सकता है। (२)पात्र वन्ध-पात्रों को वॉधने का कपड़ा। (३)पात्रस्थापन- पात्र रखने का कपड़ा। (४) पात्रकेसरिका- पात्र पोछने का कपड़ा। (५) पटल- पात्र ढकने का कपड़ा। (६) रजत्राण- पात्र लपेटने का कपड़ा। (७) गोच्छक-पात्र वगैरह साफ करने का कपड़ा। ऊपर लिखे सात उपकरणों को पात्रनिर्योग कहा जाता है। इन का पात्र के साथ सम्बन्ध है। (८-१०)प्रच्छादक-पछेवड़ी अर्थात् ओढ़ने की चद्दरें। साधु को उत्कृष्ट तीन चद्दरेरखना कल्पता है, इस लिए ये तीन उपकरण माने जाते हैं। (११) रजोहरण- वसति, पाट तथा शय्या वगैरह को पूँजने
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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