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________________ भी सेठिया जैन ग्रन्थमाला wwwwwwwww www ww www ( ख )मसि-कलम,दवात और कागज के द्वारा लेख या गणित कला का उपयोग किया जाय उसे मसिकर्म कहा जाता है। (ग ) कृषि- खेती के द्वाराया खेती सम्बन्धी पदार्थों का क्रय विक्रय करके आजीविका करना कृषि कर्म उपरोक्त तीनों विषयों में भी श्रावक को अपने योग्य कार्य की मर्यादा रख कर शेष का त्याग करना चाहिए। (पृज्यश्री जवाहिरलालजी म० कृन श्रावक के चार शिक्षावत) (धर्म संग्रह प्रधिकार ३) ८३२-चौदह प्रकार का दान जो महात्मा आत्मज्योति जगाने के लिए सांसारिक खटपट छोड़ कर संयम का पालन करते हैं, सन्तोष त्ति को धारण करते हैं उनको जीवन निर्वाह के लिये अपने वास्ते किये हुए आहारादि में से उन श्रमण निग्रन्थों के कल्पानुसार दान देना श्रावक का कर्तव्य है। श्रावक अपने लिये बनाये गये पदार्थों में से चौदह प्रकार के पदार्थों का दान साधु महात्माओं को दे सकता है । वे इस प्रकार हैं (१) अशन (२) पान (३) खादिम (४) स्वादिम । अशन पान आदि चार आहारों का स्वरूप आवश्यक नियुक्ति तथा उसके हरिभद्रीय भाष्य में नीचे लिखे अनुसार दिया है (क) अशन- रवाए जाने वाले पदार्थ, जिनका उपयोग मुख्य रूप से भूख मिटाने के लिए किया जाता है। जैसे रोटी वगैरह । (ख) पान-पेय अर्थात् पीये जाने वाले पदार्थ । जिनका उपयोग मुख्य रूप से प्यास बुझाने के लिये होता है, जैसे जल । दूध,लाछ वगैरह भी पेय हैं इस लिए साधारणतया पान में गिने जाते हैं किन्तु अशन कात्याग करने वाले को द्ध आदि नहीं फल्पते क्योंकि उनसे भूख भी मिटती है। इस लिये तिविहार उपवास
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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