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________________ २० श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला wwwnwww ८२८- चक्रवर्ती के चौदह रत्न प्रत्येक चक्रवर्ती के पास चौदह रत्न होते हैं। उनके नाम (१) स्त्रीरत्र (२)सेनापति रन (३) गायापति रत्न (४) पुरोहित । रत्न (५) वर्द्धकि (स्थ आदि बनाने वाला बढ़ई) रन (३) अश्व रन (७) हस्तिरत्र (८)असिरन (इ)दंडरत्न (१०)चक्ररत्न (११) छत्ररत्न (१२) चमररत्न (१३) मणिरन (१४) काकिणीरत्न । ___ उपरोक्त चौदह अपनी अपनी जाति में सर्वोत्कृष्ट होते हैं । इसी लिए ये रत्न कहलाते हैं। इन चौदह रत्नों में से पहले के सात रन पञ्चेन्द्रिय हैं। शेष सात रत्न एकेन्द्रिय हैं। (समवायांग १४) ८२६- स्वप्न चौदह अर्द्धनिद्रितावस्था में कल्पित हाथी, घोड़े आदि को देखना स्वप्न कहलाता है । यथार्थ रूप से देखे हुए स्वप्न का फल भी अवश्य मिलता है। भगवती सूत्र के सोलहवें शतक, छठे उद्देशे में चौदह स्वप्नों के फल का कथन किया गया है। वह निम्न प्रकार है (१) कोई स्त्री या पुरुष स्वप्न के अन्त में हाथी, घोड़े, बैल, मनुष्य, किन्नर, किम्पुरुष, महोरग, गन्धर्वआदि की पंक्ति को देख कर शीघ्र जागृत होवे तोयह समझना चाहिए कि वह व्यक्ति उसी भव में सब दुःखों का अन्त कर मोक्ष सुख को प्राप्त करेगा। (२) कोई स्त्री अथवा पुरुष स्वम के अन्त में एक रस्सी को, जो समुद्र के पूर्व पश्चिम तक लम्बी हो, अपने हाथों से इकट्ठी करता (समेटता) हुआ अपने आप को देखे तो इस स्वम का यह फल है कि वह उसी भव में मोन मुख को प्राप्त करेगा। (३) कोई स्त्री अथवा पुरुष को ऐसा स्वम आवे कि लोकान्त पर्यन्त लम्बी रस्सी को उसने काट डाला है तो यह समझना
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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