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________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला जिन जीवों के मन होता है वे संज्ञी कहलाते हैं और जिन जीवों के मन नहीं होता वे असंज्ञी कहलाते हैं । (समवायांग १४ ) (हरिभद्रीयावश्यक ) १८ जीव के चौदह भेदों का पारस्परिक अल्प बहुत्व'कौन किससे अधिक है और कौन किससे कम इस बात को बतलाना अल्पबहुत्व है । उपरोक्त प्रकार से बतलाये गये जीव के चौदह भेदों का अल्पबहुत्व पन्नवरणा सूत्र के तीसरे अल्पबहुत्व द्वार के तीसरे इन्द्रिय द्वार, उन्नी सर्वे सूक्ष्मद्वार और बीसवें संज्ञी द्वार तथा जीवाभिगम सूत्र की चौथी प्रतिपत्ति के सूत्र २२५ के आधार से यहाँ दिया जाता सब से थोड़े अपर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय हैं, पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय उन से असंख्यात गुणा । पर्याप्त चतुरिन्द्रिय उनसे संख्यात गुणा । पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय उनसे विशेषाधिक । उनसे पर्याप्त बेइन्द्रिय विशेपाधिक। उनसे पर्याप्त तेइन्द्रिय विशेषाधिक । उनसे अपर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय असंख्यात गुणा । उनसे अपर्याप्त चतुरिन्द्रिय विशेषाधिक। पर्याप्त बादर एकेन्द्रिय उनसे अनन्त गुणा । श्रपर्याप्त बादर एकेन्द्रिय उनसे असंख्यात गुणा । अपर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय उनसे असंख्यात गुणा । पर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय उनसे संख्यात गुणा अधिक हैं। ( प्रकरण संग्रह दूसरा भाग ) ८२६ - संमूच्छिम मनुष्यों के उत्पत्तिस्थान चौदह बिना माता पिता के उत्पन्न होने वाले अर्थात् स्त्री पुरुष के समागम के बिना ही उत्पन्न जीव सम्मूच्छिम कहलाते हैं। पैंतालीस लाख योजन परिमाण मनुष्य क्षेत्र में, ढाई द्वीप और समुद्रों में, पन्द्रह कर्मभूमि, तीस अकर्म भूमि और छप्पन अन्तर द्वीपों में गर्भज मनुष्य रहते हैं। उनके मल मूत्रादि में सम्मूच्छिम मनुष्य उत्पन्न होते हैं । उनकी उत्पत्ति के स्थान चौदह हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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