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________________ १२ - श्री मेडिया जैन ग्रन्थमाला स्थान श्रुत,नागपरिज्ञा,निग्यावलिका,कल्पिका, कल्पावतंसिका, पुष्पिता,पुष्पचूलिका और वृष्णिदशा आदि सभी कालिक श्रुत हैं। इनके सिवाय प्रकीर्णक भी इन्हीं में गिने जाते हैं। भगवान् ऋषभदेव के समय ८४ हजार,बीच के तीर्थङ्करों के समय संख्यात हजार और भगवान् महावीर के शासन में चौदह हजार प्रकीर्णक रचे गए। अथवा जिस तीर्थङ्कर के शासन में जितने जितने शिष्य औत्पातिकी, वैनयिकी, कार्मिकी या पारिणामिकी बुद्धि वाले हुए उसके समय में उतने ही प्रकीर्णकसहस्र हुए । प्रत्येकबुद्ध भी उतने ही हुए। ( नन्दी सूत्र, सूत्र ३८-४४ ) ( विशेषावश्यक भाष्य गाथा ४४४-४६६ ) ८२६- पूर्व चौदह तीर्थ का प्रवर्तन करते समय तीर्थडर भगवान जिस अर्थ का गणधरों को पहले पहल उपदेश देते हैं, अथवा गणधर पहले पहल जिस अर्थ को सूत्र रूप में गूंथते हैं, उन्हें पूर्व कहा जाता है। पूर्व चौदह हैं (१) उत्पादपूर्व- इस पूर्व में सभीद्रव्य और सभी पर्यायों के उत्पाद को लेकर प्ररूपणा की गई है। उत्पाद पूर्व में एक करोड़ पद हैं। (२) अग्रायणीय पूर्व- इस में सभी द्रव्य, सभी पर्याय और सभी जीवों के परिमाण का वर्णन है। अग्रायणीय पूर्व में छयानवे लाख पद हैं। (३) वीर्यप्रवाद पूर्व- इस में कर्म सहित और विना कर्मवाले जीव तथा अजीवों के वीर्य (शक्ति) का वर्णन है। वीर्य प्रवाद पूर्व में सत्तर लाख पद हैं। (४) अस्तिनास्ति प्रवाद-संसार में धर्मास्तिकाय आदि जो वस्तुएँ विद्यमान हैं तथा आकाश कुसुम वगैरह जो अविद्यमान हैं, उन सब का वर्णन अस्तिनास्ति पवाद में है। इस में साठ लाख पद हैं।
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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