SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 505
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तल श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाचवां भाग 417 orrrrrrrrrmmmwwwxnm mmmmmwwwmorrom नागश्री के पति को मालूम हुमा / इससे वह अतिकुपित हुआ। तर्जना और ताड़नापूर्वक उसने नागश्री को घर से बाहर निकाल दिया,जिससे लोगों में भी उसकी बहुत हीलना और निन्दा हुई।दर दर भटफनी हुई नागश्री के शरीर में सोलह रोग उत्पन्न हुए / मर फर छठी नरक में उत्पन्न हुई। वहाँ से निकल कर मत्स्य(मच्छ), सातवीं नरफ, मत्स्य, सातवीं नरक,मत्स्य,छठी नरफ,उरगादिक फे भव बीच में फरती हुई पांचवीं नरक से पहली नरफ तफ,चादर पृथ्वी काय आदि सव एकेन्द्रियों में लाखों भव करने के पश्चात् चम्पानगरी में सागरदत्त सार्थवाह के सुकुमालिका नाम की पुत्री रूप से उत्पन्न हुई। यौवन वय को प्राप्त होने पर जिनदस सार्थवाह के पुत्र सागर के साथ विवाह किया गयाफिन्तु उसके शरीर का वार जैसा उग्र और अग्निसरीखा उष्ण लगने के कारण सागर ने तत्काल उसका त्याग कर दिया और अपने घर चला गया। इससे सङ्घमालिका अति चिन्तित हुई। तब पिता ने उसको आश्वासन दिया और अपनीदानशाला में उसे दान देने के लिए रख दिया। एक समय गोपालिफामार्या से धर्मोपदेश सुन फर उसे संसार से विरक्ति हो गई। उसने गोपालिफा आर्या के पास पत्रज्या अङ्गीफार कर ली। बह वेला तेला भादि तप करती हुई विचरने लगी। एक समय अपनी गुरुआनी की भाज्ञा के बिना ही शहर के बाहर उद्यान में माफर सूर्य की प्रातापना लेने लगी / वहाँ उसने देवदत्ता गणिका के साथ क्रीड़ा करते हुए पांच पुरुषों को देखा। यह देख कर सुकमालिकाआयो ने नियाणा कर लिया कि यदि मेरी तपस्या का फल हो तो आगामी भव में मैं भी पांच पुरुपों की वल्लभा (प्रिया) वनें / इस प्रकार का नियाणा करफे.चारित्र(संयम) में भी वह शिथिल होगई / अन्त में भर्धमास की संलेखना संथारा करके ईशान देवलोक में देवी रूप से उत्पन्न हुई। वहॉ से चव
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy