SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पांचवां भाग श्रुत जो समय और क्षेत्र के अनुसार बदलता रहता है वह चंगबाह्य श्रुत है । अंग बाह्य श्रुत के दो भेद हैं- आवश्यक और आवश्यक व्यतिरिक्त । जिस शास्त्र में साधु के लिए अवश्य करने योग्य बातें बताई हों वह आवश्यक श्रुत है अथवा अवश्य करने योग्य क्रियाओं का अनुष्ठान करना श्रावश्यक है, अथवा जो आत्मा को अपने गुणों के वश (अधीन) करे वह आवश्यक है। आवश्यक के छः भेद हैं- सामायिक, चडवीसत्थव, वन्दना, प्रतिक्रमण कायोत्सर्ग और प्रत्याख्यान | ۴۴ आवश्यक व्यतिरिक्त के दो भेद हैं-कालिक और उत्कालिक । जो सूत्र दिन अथवा रात के पहले या पिछले पहर में ही पढ़ा जाता है उसे कालिक कहते हैं । जिस शास्त्र के पढ़ने में समय का कोई बन्धन नहीं है उसे उत्कालिक कहा जाता है। कालिक के भेद आगे दिए जाएंगे । उत्कालिक के अनेक भेद हैं- दशवैकालिक, कल्पाकल्प, कल्पश्रुत, क्षुद्रकल्पश्रुत, महाकल्प श्रुत, औपपातिक, राजप्रश्नीय, जीवाभिगम, प्रज्ञापना, महाप्रज्ञापना, प्रमादाप्रमाद, नन्दी, अनुयोगद्वार देवेन्द्रस्तव, तन्दुल वैयालिक, चन्द्रविद्याक, सूर्यप्रज्ञप्ति, पोरिसीमण्डल, मंडलप्रवेश, विद्याचरण विनिश्चय, गरिणविद्या, ध्यानविभक्ति, मरणविभक्ति, आत्मविशुद्धि, वीतराग श्रुत, संलेखना श्रुत, विहारकल्प, चरणविधि, आतुरप्रत्याख्यान, महाप्रत्याख्यान इत्यादि । कालिक श्रुत भी अनेक प्रकार का है- उत्तराध्ययन, दशाश्रुतस्कन्ध, कल्प, व्यवहार, निशीथ, महानिशीथ, ऋषिभाषित, जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, द्वीपसागर प्रज्ञप्ति, चन्द्र प्रज्ञप्ति, क्षुद्रक विमान प्रविभक्ति, महती विमान प्रविभक्ति, अंगचूलिका, वर्ग चूलिका, विवाह चूलिका, अरुणोपपात, वरुणोपपात, गरुड़ोपपात, धरणोपपात, वैश्रमणोपपात, वेलंधरोपपात, देवेन्द्रोपपात, उत्थानश्रुत, समुप
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy