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________________ 148 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला - . .marva . . .mmmmmmm ... -- ~ ~ ~ ~ ~ में बहुत ऊंचा ले गया और अरणक श्रावक से फिर इसी प्रकार कहने लगा कि तू अपने धर्म को छोड़ दे। किन्तु वह अपने धर्म से किश्चित् भी चलायमान नहीं हुआ / अरणक श्रावक को इस प्रकार अपने धर्म में दृढ़ देख कर वह पिशाचशान्त होगया। अपना असली देवस्वरूप धारण करके वह अरणक श्रावक के सामने हाथ जोड़ कर उपस्थित हुआ और कहने लगा कि- पूज्य ! आप धन्य हैं / आपका जन्म सफल है। आज देवसभा के अन्दर शक्रेन्द्र ने आपकी धार्मिक दृढ़ता की प्रशंसा की कि जीवाजीवादिक नव तत्त्व का ज्ञाता अरणक श्रावक अपने धर्म के विषय में इतना दृढ़ है कि उसको देव दानव भी निर्ग्रन्थ प्रवचन से विलित करने में और समकित से भ्रष्ट करने में समर्थ नहीं हैं। मुझे शक्रेन्द्र के वचनों पर विश्वास नहीं आया। अतः मैं आपकी धार्मिक दृढ़ता की परीक्षा करने के लिए यहाँ आया था। "देवानप्रिय ! जिस तरह शकेन्द्र ने आपकी प्रशंसा की थी वास्तव मे श्राप वैसे ही हैं। मैंने जो आपको कष्ट दिया उसके लिए आपसे क्षमा चाहता हूँ। मेरे थपराध को आपक्षमा करें।" इस प्रकार वह अपने अपराध की क्षमा याचना करके अरणक श्रावक की सेवा में कुण्डलों की जोड़ी रख कर अपने स्थान को चला गया। अपने आप को उपसर्ग रहित समझ कर अरणक श्रावक ने काउसग्ग खोला और सागारी संथारे को पार लिया। इसके बाद वेअरशक आदि सभी नौणिक दक्षिण दिशा में स्थित मिथिला नगरी के अन्दर आये / अरणक ने राजा कुम्भ को बहुत सा द्रव्य और एक कुण्डल जोड़ी भेट की। राजा कुम्भ को वह कुण्डल जोड़ी बहुत पसन्द आई और उसी समय मल्लिकुवरी को बुला कर उसे पहना दी / भरणक आदि व्यापारियों का बहुत आदर सत्कार किया और उनका राज्य महसूल माफ कर दिया।
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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